Description
लगता है कि आज भी अलकनंदा, भागीरथी, भिलंगना, मंदाकिनी, पिंडरी, नंदाकिनी, यमुना, टौंस, कोसी, सरयू, रामगंगा आदि अमृतवाहिनी-मोक्षदायिनी नदियाँ किन्हीं राजाओं की ही अतृप्त आत्मा को मुक्ति दिलाने के लिए श्रम और साधन की गंगा बनकर मैदानों की ओर ही बही चली जा रही हैं…कभी वापस न लौटने के लिए! साथ में बहाये ले जा रही हैं पर्वतों का सीना छीलकर उनकी माटी, उनके पुत्रों की मेहनत और मति! अलकनंदा के पात्र पिछले साठ-सत्तर वर्षों के काल-कैनवस के होते हुए भी उत्तराखंड के दस बरस के क़िस्से को केवल बीस दिन की यायावरी में कह देते हैं। यह इस तथ्य का भी जीवंत उदाहरण है कि उत्तराखंड इतने बरसों में न सिर्फ़ ठहर गया है, बल्कि लगातार नीचे की ओर लुढ़कता ही जा रहा है। इस कहानी में मैं अकेला नहीं, इसमें हम सब हैं। उत्तराखंड की त्रासद पीड़ा सिर्फ़ उत्तराखंड की नहीं है। यह देश के हर उस क्षेत्र की पीड़ा है, जो उपेक्षित है और पिछड़ा रहने के लिए अभिशापित है-वह चाहे रेगिस्तानी हो मैदानी हो पहाड़ी हो या वनखंडी!
Author: Nandkishore Nautiyal
Publisher: Nandkishore Nautiyal
ISBN-13: 9.78935E+12
Language: Hindi
Binding: Paperback
No. Of Pages: 332
Country of Origin: India
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