Description
म्पूर्ण तंत्र-मंत्र के रहस्ïय का चिन्ïतन करने से यह निष्ïकर्ष निकलता है कि अप्राप्ïत वस्ïतु की प्राप्ïित और प्राप्ïत वस्ïतु की रक्षा करना ही इस पथ/मार्ग का मुख्ïय उद्देश्ïय है। इसी को गीता में योगक्षेम कहा गया है। ‘योगक्षेमÓ को ‘शंयु: पुष्ïिट:Ó शान्ïित पदों द्वारा अभिव्ïयक्त किया गया है। तंत्र-मंत्र रहस्ïय में जो ‘यातुÓ कृत्ïया और अभिचार कर्मों का प्रतिपादन किया गया है उसे लेकर कुछ विद्वानों ने सदï्मार्ग के विरुद्ध बवंडर खड़ा कर दिया है। हम किसी की निन्ïदा, आलोचना करने की प्रवृत्ति न रखकर इतना ही कहना चाहते हैं कि चारों वेदों का अध्ïययन, सम्पूर्ण कर्म-काण्ïड एवं तंत्र-मंत्र का अध्ïययन, मनन, स्ïवाध्ïयाय और चिन्ïतन तप: साध्ïय साधना साध्ïय है। ‘तंत्र-मंत्रÓ रहस्ïय विद्या, तत्त्ïवज्ञान और जन-कल्ïयाणकारी कर्मों का रहस्ïय है। इसमें कृत्ïयादूषण एवं अभिचार कर्म तंत्र-मंत्र एवं यंत्र साधना बताए गए हैं, उनका उद्देश्ïय आत्ïमरक्षार्थ है। अत: वे भी शान्ïित, पुष्ïिट के अन्ïतर्गत परिगणित हैं। अशुभ फलों के निवारण के लिए ‘शमÓ कल्ïयाण के लिए किए जाते हैं। उनके मूल में ‘शान्ïितÓ ही है। इस ग्रन्थ का मुख्य उद्देश्ïय शत्रुओं, दुष्ïटों, का शमन करना होता है जिससे व्ïयक्ति का, जन-समुदाय का अशुभ न हो, उसे कोई हानि न हो। चारों वेदों कर्मकाण्ïडों एवं तंत्रशास्ïत्र का रहस्ïयमयी शक्ति का अस्ïितत्ïव अनादि काल से (लोग) मानव स्ïवीकार करते हैं। इस शास्ïत्र का मुखïय उद्देश्ïय किसी अभीष्ïट की प्राप्ïित के लिए उस रहस्ïयमयी आदिशक्ति की स्ïतुति की जाती है, यज्ञ किए जाते हैं, देवता भी उस आदिशक्ति की सहायता, कृपा के आकांक्षी होते हैं। ऋग्ïवेद संहिता में ऋषि विश्ïवामित्र अपने स्ïतुति सामथ्ïर्य से आदिशक्ति की प्रार्थना करते हुए कहते हैं—’भारतानï् जनानï् रक्षा।Ó अर्थातï् भारतीय प्रजा की रक्षा करो। सम्पूर्ण वेद-वेदांग का अध्ïययन करने से यह निश्ïिचत प्रतीत होता है कि हमारे पुरातन महॢष और पूर्वज अपने-अपने इष्ïट देवता में अगाध श्रद्धा रखते थे। निष्ïठापूर्वक उनकी आराधना किया करते थे। उनका यह दृढ़-विश्ïवास था कि देवाराधन देव-स्ïतुति से उनकी समस्ïत आध्ïयात्ïिमक, भौतिक कामनाएँ पूरी होती हैं। वैदिक-काल और उत्तर वैदिक काल में आध्ïयात्ïिमक और लौकिक सिद्धि प्राप्ïत करने के लिए मंत्र सिद्धि प्राप्ïत की जाती रही है। वह परम्ïपरा अब भी प्रचलित है। तंत्र साधना द्वारा न केवल भौतिक सिद्धि प्राप्ïत की जाती है, अपितु उससे विमुक्ति भी प्राप्ïत होती है।
Author: Swami Krishna Nandji Maharaj
Publisher: Swami Krishna Nandji Maharaj
ISBN-13: 9.78817E+12
Language: Hindi
Binding: Paperbacks
No. Of Pages: 196
Country of Origin: India
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