Description
हिन्दी और मैथिली की समादृत कथाकार उषाकिरण खान का यह उपन्यास स्वतंत्रता पूर्व से वर्तमान समय तक मिथिला की एक धड़कती हुई तस्वीर है । इसमें इस क्षेत्र विशेष की आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक परिस्थितियां कुछ इस प्रकार साकार हुई हैं कि यह एक ऐतिहासिक दस्तावेज ही बन गया है । सत्तर वर्षों की इस वृहद कथा में रचनाकार ने निरंतर पूर्वग्रह से ग्रसित हठी होते मिथिला का चरित्र भावपूर्ण कथारस के साथ प्रस्तुत किया है । एक अर्थ में यह मिथिला के शिथिल होने की जीवन्त कथा है । इस कथा के केन्द्र में एक प्राचीन बड़ा जलस्रोत रजोखर है, जिसके माध्यम से सत्तर वर्षों की दुर्दशा कथा में प्रवाहित हुई है । इस प्रवाह में पाठक स्वातंत्र्य आंदोलन, गांधी और तत्कालीन नेतृत्व के सपने, चरखा, संस्कृति, खादी ग्रामोद्योग का प्रारम्भ ही नहीं, उसके विघटनकारी तत्वों के साथ ही स्वातंत्र्योत्तर भारत में मिथिला के लिए निर्मित योजनाएं और उनका व्यावहारिक स्वरूप, स्वार्थलिप्त राजनीति व उसका अपराधीकृत संस्करण भी खुलकर सामने आता है । सामाजिक कमजोरियों में छुआछूत, परिवर्तन में विधवा विवाह और पलायन जैसे महाप्रश्नों पर यह कथा बखूबी विचार करती है । इसका एक महत्त्वपूर्ण पक्ष यह भी है कि यहां औद्योगीकरण, जलसंकट, मातृभाषा, स्त्री चेतना, आर्थिक स्वतंत्रता, आत्मनिर्भरता आदि पर गम्भीरता से फोकस करते हुए व्यक्ति चरित्रों की निजी स्वतंत्रता को भी सम्भवत: पहली बार उठाया गया है । हिन्दी और मैथिली की सशक्त कथाकार उषाकिरण खान की खुली जीवनदृष्टि को अनुवादक मीना झा ने बड़े करीने से भाषा दी है ।
Author: Ushakiran Khan
Publisher: Samayik Prakashan
ISBN-13: 9789393232144
Language: Hindi
Binding: Paperback
Product Edition: 2022
No. Of Pages: 160
Country of Origin: India
International Shipping: No
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