Description
“स्वतंत्रता के बाद के 75 वर्षो में कुछ प्रत्यय अर्थात् गहन चर्चा के, गंभीर विमर्श के विषय बने रहे हैं। उनमें कश्मीरियत सबसे प्रमुख प्रत्यय है। कश्मीरियत अर्थात् कश्मीर की पहचान । कश्मीर के लोगों का वैशिष्ट्य । पर इस विमर्श में सर्वदा दो हिस्से दिखाई देते रहे।
एक वह जो कश्मीरियत को भारत से असंपृक्त, विभक्त और एकांतिक रूप में देखता रहा है तो दूसरी ओर वह जो कश्मीरियत को भारतीयता के उत्सबिंदु के रूप में देखता है। पर देखने की ये दोनों दृष्टियां सांस्कृतिक कम, राजनीतिक अधिक हैं।
यह पुस्तक कश्मीर को नए तरीके से नहीं बल्कि यत्न है कश्मीर को सम्यक् तरीके से देखना या समग्रता में देखना। पार होकर देखना और पारावार में देखना। पौराणिकता में देखना तो आधुनिकता में देखना । दोनों या पौराणिकता और आधुनिकता के बीच निरंतरता में देखने से ही सुरभि होती है।
ठहराव सड़न और दुर्गध पैदा करती है। ठहराव खत्म हुआ है तो निरंतरता आएगी। इस विश्वास के साथ इस पुस्तक में सांस्कृतिक अवबोध और समकालीन विमर्श को काल के सातत्य में रखने की कोशिश की गई है।”
Author: Prof. Kripashankar Chaubey
Publisher: Prabhat Publication
ISBN-13: 9789355212573
Language: Hindi
Binding: Paperback
Product Edition: 2022
No. Of Pages: 220
Country of Origin: India
International Shipping: No
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