Description
मन चित चातक ज्यूं रटै, पिव पिव लागी प्यास।
नदी बह रही है, तुम प्यासे खड़े हो; झुको, अंजुली बनाओ हाथ की, तो तुम्हारी प्यास बुझ सकती है। लेकिन तुम अकड़े ही खड़े रहो, जैसे तुम्हारी रीढ़ को लकवा मार गया हो, तो नदी बहती रहेगी तुम्हारे पास और तुम प्यासे खड़े रहोगे। हाथ भर की ही दूरी थी, जरा से झुकते कि सब पा लेते। लेकिन उतने झुकने को तुम राजी न हुए। और नदी के पास छलांग मार कर तुम्हारी अंजुली में आ जाने का कोई उपाय नहीं है। और आ भी जाए, अगर अंजुली बंधी न हो, तो भी आने से कोई सार न होगा। शिष्यत्व का अर्थ है झुकने की तैयारी। दीक्षा का अर्थ है अब मैं झुका ही रहूंगा। वह एक स्थायी भाव है। ऐसा नहीं है कि तुम कभी झुके और कभी नहीं झुके। शिष्यत्व का अर्थ है, अब मैं झुका ही रहूंगा; अब तुम्हारी मर्जी। जब चाहो बरसना, तुम मुझे गैर-झुका न पाओगे।
ओशो पुस्तक के कुछ मुख्य विषय-बिंदु
* भक्ति की राह में श्रद्धा की अनिवार्यता
* प्रेम समस्या क्यों बन गया है?
* धर्म और नीति का भेद
* समर्पण का अर्थ
* शब्द से निःशब्द की ओर
Author: Osho
Publisher: Diamond Pocket Books (Pvt.) Ltd.
ISBN-13: 9789390088683
Language: Hindi
Binding: Paperbacks
Country of Origin: India
International Shipping: No
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