Description
जब पूर्वांचल में सूती-मिल की स्थापना हुई, तो लोगों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। सैकड़ों लोगों को छोटी-बड़ी नौकरियाँ मिलीं। रहने के लिए घर, बिजली-पानी आदि अनेक सुविधाएँ उन्हें प्राप्त हुईं। वे खुश थे। पर उनकी खुशी दीर्घकालिक न रह सकी। मिल अपने जीवन के दो दशक भी पूरे नहीं कर पाई और दम तोड़ दिया। लोग बेघर और बेरोज़गार हो गए। लोगों का परिवार बिखर गया। उन्हीं में एक परिवार पद्मिनी का भी था। उसके भी सपने टूटकर बिखर गए थे। उसी की कहानी से शुरू होता है, यह उपन्यास। पद्मिनी को किन्हीं कारणवश बहुत छोटी उम्र में ही माँ-बाप का घर छोड़कर नाना-नानी के साथ रहने के लिए विवश होना पड़ा था। उसके पिता मिल में अधिकारी थे। उनकी आय का एकमात्र स्रोत सूती-मिल जब बन्द हो गई, तब उसका परिवार एक गहरे संकट में पड़ गया। पद्मिनी की परेशानियाँ तब और भी बढ़ गई थीं।
पद्मिनी की कहानी जैसे-जैसे आगे बढ़ती है, उसके साथ ही मिल से जुड़े अनेक चेहरे जैसे : दयालु चाचा, मार्कण्डेय भाई, राय साहब, संतोष, भीमसेन, आदि एक-एक कर किरदार बनकर खड़े होते जाते हैं। उनका संघर्ष, उनकी पीड़ा और उनके आँसू शब्द बनकर स्वयं ही कहानी रचने लगते हैं। उनकी कहानियाँ अनेक सवाल भी उठाती हैं : मिलों-कारखानों में मजदूरों के नाम पर चलाए जाने वाले आन्दोलन, क्या सचमुच उनके हित-साधक होते हैं? मरजादपुर सूती-मिल बन्द कराकर आखिर किसका फायदा हुआ? …मजदूरों का? कर्मचारियों का? या पूर्वांचल के लोगों का? नहीं! इनमें से किसी का भी नहीं। हाँ, कुछ की तिजोरियाँ अवश्य भर गईं और कुछ लोगों की नेतागिरी भी खूब चमकी। किन्तु, जो जानें गईं, विकलांग हुए, परिवार उजड़े, उन सबका जिम्मेदार आखिर कौन है? क्या इन प्रश्नों के उत्तर ढूँढ़ने नहीं चाहिए?
Author: Ram Kathin Singh
Publisher: Lokbharti Prakashan
ISBN-13: 9788119159871
Language: Hindi
Binding: Hardbound
No. Of Pages: 160
Country of Origin: India
International Shipping: No
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