Description
भारतीय सभ्यता और संस्कृति के विकसित ऐतिहासिक काल में आसन एवं मुद्राओं के प्रतीकात्मक महत्त्व और भावदर्शन की मुख्यत: चार परम्पराएँ हैं— नाट्यशास्त्र, योगशास्त्र, पूजा-पद्धति तथा कला की परम्परा। नाट्यशास्त्र की परम्परा के अनुसार मनुष्य का सम्पूर्ण शरीर उसकी स्वाभाविक प्रवृत्ति के अनुसार भावों को शारीरिक, मानसिक और वाचिक क्रियाओं के रूप में अभिव्यक्त करता है। योगशास्त्र की परम्परा के अनुसार बैठने के विभिन्न स्वरूपों में सम्पूर्ण शरीर को कार्यशील या सक्रिय माना जाता है। पूजा-पद्धति में देवता के प्रति श्रद्धा और भक्ति के भावों की शब्द के माध्यम के साथ-साथ शारीरिक मुद्राओं द्वारा प्रदॢशत या व्यक्त करने की परम्परा का विकास मिलता है। कला के अन्तर्गत आसन एवं मुद्राओं की परम्परा स्वयं देवता के मूॢत-शास्त्रीय स्वरूप में दिखाई गयी है। प्राचीन भारत में शरीर-साधनों की पद्धति का शास्त्रीय, ऐतिहासिक तथा कलात्मक विवेचन। प्राचीन इतिहास, पुरातत्त्व, नाट्यशास्त्र एवं शरीर-साधना शास्त्र के अध्येताओं के लिए महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ।
Author: Dr. Ravindra Pratap Singh
Publisher: Dr. Ravindra Pratap Singh
ISBN-13: 9.78817E+12
Language: Hindi
Binding: Hardbound
Country of Origin: India
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