Description
‘इलाहाबाद डायरी – एक ग़ैर मामूली दास्तान’ हिंदी माध्यम के छात्रों की संघर्ष गाथा है जो सिविल सेवा परीक्षा पास करके आईएएस बनना चाहते हैं। इसी कथा के समानांतर एक दूसरी कथा एक कम उम्र की विधवा शांति की है जिसका बेटा उसे छोड़कर विदेश चला जाता है। वैधव्य की पीड़ा, पुत्र का देश छोड़कर चले जाना और अकेलेपन की त्रासदी के बीच यह नारी पात्र आज की पीढ़ी पर वर्तमान समाज के परिप्रेक्ष्य में कई मौलिक प्रश्न खड़े करता है। कहानी पढ़ते समय यह आभास होता है कि यह कथा न केवल समाज में अपना स्थान बनाने की ख़्वाहिश रखने वाले कुछ नवयुवकों की है बल्कि इसमें दो परिस्थितिजन्य पीड़ा से ग्रसित महिलाओं की संघर्ष गाथा भी है। अनुराग का संघर्ष कहानी में बारीकी से चित्रित किया गया है। इस पात्र का चरित्र उदात्त चरित्र नहीं है। अपने जीवन के लक्ष्य तक पहुँचने के लिए वह झूठ-फरेब सब करने को तैयार है। इसकी एक ही नैतिकता है- विजय, चाहे वह किसी के ध्वंस पर ही क्यों न हो। कहानी में हिंदी माध्यम के अन्य पात्र इलाहाबाद (वर्तमान का प्रयागराज) के हिंदी माध्यम छात्र-जीवन को पूरी तरह संदर्भित करते हैं और इस परीक्षा में अँग्रेज़ी के प्रभाव और मातृभाषा के अपमान पर कई अनुत्तरित प्रश्न पर उठाते हैं। उर्मिला का संघर्ष, शांति की पीड़ा, हिंदी माध्यम के छात्रों की अँग्रेज़ी न जानने की विवशता के मध्य एक संकल्प इन निम्न मध्यवर्गीय छात्रों का कि मैं जन्मा हूँ एक ग़ैर मामूली दास्तान के लिए, कथानक का केंद्र बिंदु है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय, यूनिवर्सिटी रोड, इलाहाबाद के छोटे-छोटे मुहल्ले इस कथानक में दिखाए गए हैं। कई पात्र इस कहानी के सजीव हैं जिनको आम जीवन से उठाया गया है। अगर ऐसा कहा जाए कि इस कहानी के पात्र कुछ अलग नाम और क़द-काठी के साथ आज भी इलाहाबाद के छात्रावासों और डेलीगेसियों में साँसें ले रहे तो शायद यह अतिशयोक्ति न होगी। यह भावना के धरातल पर लिखा गया उपन्यास है जिसमें भावनाएँ अक्सर प्रधान हो जाती हैं और पात्रों से अधिक पात्रों की भावनाएँ मस्तिष्क को प्रभावित करने लगती हैं।
Author: Virendra Ojha
Publisher: Hind Yugm
ISBN-13: 9789392820366
Language: Hindi
Binding: Paperbacks
No. Of Pages: 351
Country of Origin: India
International Shipping: No
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