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Ankaha Aakhyan (Hindi) (HB) By Jaya Jadwani (9788194047049)

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Description

संग्रह की कहानियाँ मध्य वर्ग में स्त्री जीवन की नियति और त्रासदी को अपना विषय बनाती हैं। खासतौर से वैवाहिक जीवन के भीतर स्त्री जीवन को। वैसे तो पूरे समाज और सभ्यता में वैवाहिक जीवन में स्त्रियों का जीवन ज्यादा संघर्षपूर्ण, त्रासद और विडंबनात्मक होता है। परंतु मध्यवर्गीय स्त्रियाँ इस त्रासदी को ज्यादा भोगती हैं, क्योंकि संघर्ष विडंबना और त्रासदी को पति, परिवार और समाज के स्तर पर वे कभी अभिव्यक्त नहीं कर पातीं। उन्हें इस त्रासदी को झेलते हुए अच्छी बेटी, अच्छी पत्नी, अच्छी बहू बनने का प्रशिक्षण दिया जाता है। लंबे वैवाहिक जीवन में यह प्रशिक्षण उनके जीवन के संघर्ष को कई गुणा बढ़ाता है। जिन स्त्रियों में स्व व्यक्तित्व के प्रति सजगता उत्पन्न हो जाती है, उनका संघर्ष कई गुणा बढ़ जाता है। ये कहानियाँ इन्हीं स्व व्यक्तित्व सजग स्त्रियों की कहानियाँ हैं। इस जागृति की कोई उम्र नहीं होती। `अनकहा आख्यान` की ईवा कहती है—`चालीस के बाद मेरी नींद खुली।` इन कहानियों का दूसरा सिरा है-इन मध्यवर्गीय स्त्रियों की त्रासदी, घुटन की अभिव्यक्ति। पर ये कहानी का पार्श्व हैं। मुक्ति की आकांक्षा इन कहानियों का मुख्य उद्देश्य है। इन मध्यवर्गीय स्त्रियों में ऊब, घुटन, व्यक्तित्व हनन और उसके बाद भी कुशल गृहिणी बनने का तनाव कितना गहरा है कि लंबे वैवाहिक जीवन का अंत मुक्ति का संदर्भ निर्मित करता है। अब उठूगी राख़ से` में पति के शव के समक्ष होने पर भी वह दुख का अनुभव करने के स्थान पर शांति महसूस करती है-`बेइंतहा शोर के बाद की शांति`। पूरे संग्रह के संदर्भ में यह प्रश्न है कि यह शोर किसका है? निश्चितरूपेण विभिन्न संस्थाओं के बीच स्व सजग व्यक्तित्व के संघर्ष का शोर है। मुक्ति भी उन्हीं संस्थाओं से चाहिए, जिनके भीतर वह जिंदगी भर फँसी रही। परिवार, पति, समाज इस प्रसंग में विभिन्न संस्थाओं का रूप धारण कर लेते। इससे इतर महिलाओं के प्रति हो रहे तमाम किस्म के अपराधों, ज्यादतियों के विरुद्ध व्यक्तित्व की सजगता है। यह मुक्ति की संपूर्णता का आख्यान है। यह सिर्फ देह की मुक्ति नहीं है। देह से इतर दैनंदिन जीवन का संघर्ष मुक्ति की आकांक्षा का आधार है। यह फौजियों की तरह कभी-कभार की लड़ाई नहीं है। यह रोज की लड़ाई-खुद से भी और दूसरों से भी। जैसे यह संघर्ष बहुस्तरीय है, वैसे ही कहानियों की संवेदनात्मक संरचना भी अनेक स्तरीय है। चित्रण में सपाटता नहीं है। क्रियाओं से, भावों से उपजी प्रतिक्रियाओं की आंतरिकता कहानियों को समृद्ध करती है। ये विभिन्न किस्म की अनेक स्तरीयताएँ पाठ के धरातल पर पाठक को संतुष्ट या आत्मसंतुष्ट नहीं होने देती। पाठ-पाठकों को अपनी यात्रा में सहभागी बनाता है। कहानियों की आंतरिकता को उसकी दार्शनिकता भी सुपुष्ट करती है। ये कहानियाँ कहानीकार के अंतर्विषयक समझ का स्पष्ट प्रमाण हैं। मनोविज्ञान, समाज और भाषा की गहरी समझ से युक्त ये कहानियाँ पठनीय और विचारणीय हैं।



Author: Jaya Jadwani
Publisher: Setu Prakashan
ISBN-13: 9788194047049
Language: Hindi
Binding: Hardback
Product Edition: 2019
No. Of Pages: 176
Country of Origin: India
International Shipping: No

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Weight 0.340 kg

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