Description
उषा प्रियवंदा का यह उपन्यास उन तमाम भारतीय परिवारों की जीवन-शैली का विश्लेषण करता है जो बेहतर अवसरों की तलाश और आशा में प्रवासी हो जाते हैं। विदेश में बसे युवकों से मध्यवर्गीय परिवारों की कन्याओं का विवाह सौभाग्य समझा जाता है और फिर शुरू होता है संघर्ष और मोहभंग का अटूट सिलसिला।
ऐसी ही है अन्तर्वंशी की नायिका बनारस की ‘वनश्री’ या ‘बाँसुरी’ जो अमरीका पहुँचकर ‘वाना’ हो जाती है-एक ऐसे समाज के बीच जहाँ सभी लोग ‘औरों’ की उपलब्धियों और लाचारियों के बीच कशमकश में पड़ी जैसे-तैसे ग्रहस्थी की गाड़ी खींचती ‘वाना’। पति की असमर्थताओं का दमघोट एहसास उसे क्रमशः उसके प्रति संवेदनहीन बना देता है, जिसकी परिणति होती है संबंधों के ठंडेपन में। पर उसके चारों ओर एक दुनिया और भी है जिसमें ‘अजी’ है, ‘राहुल’ है, ‘सुबोध’ है। सब एक-दूसरे से भिन्न, अपने-अपने रास्तों को तलाशते हुए। सभी ‘राहुल’ की तरह सफलता की सीढ़ियाँ नहीं चढ़ पाते और न ही ‘शिवेश’ की तरह टकराकर लहुलुहान होते हुए कारुणिक अंत को प्राप्त होते हैं-सवाल है अपनी-अपनी क्षमता और अपनी-अपनी नियति का।
अमेरिकावासी इन पात्रों और परिवारों की जिंदगी को, उनके आपसी संबंधों और संघर्षों को गहरी अंतदृष्टि और पर्यवेक्षण-सामर्थ्य से उद्घाटित करता है यह उपन्यास। अनुभव की प्रामाणिकता और गहन संवेदनीयता से युक्त रचनाओं की श्रृंखला में एक महत्वपूर्ण कड़ी।
Author: Usha Priyamvada
Publisher: Vani Prakashan
ISBN-13: 9788170557050
Language: Hindi
Binding: Hardbound
Country of Origin: India
International Shipping: No
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