Description
रंग से विमुखता अन्धकार है, निराशा है। जहाँ पराजय है, वहाँ रंग नहीं है। वहाँ उम्मीद की किरणें नहीं उगतीं। उम्मीद का अपना रंग होता है। उसकी पहचान होती है । रोशनी का सफ़ेद और पीला रंग किरणों का रंग है। वही पीलापन इस धरती के अंग-अंग में समाया है । लेकिन जब तुलसी और पीपल का पौधा वृक्ष बनता है तो हरीतिमा का संचार पूरे वातावरण में हो जाता है। एक पौधा और बूढ़ा पेड़ का रंग अलग होता है। जीवन में मन के विभिन्न रंग हैं। ये रंग मनोदशा के अनुसार बदलते हैं । कोई प्यार का रंग है, तो कोई शान्ति का। कोई सृजन का रंग है, तो कोई शौर्य एवं त्याग का। भारतीय जीवन में भगवा रंग को विशेष स्थान दिया गया है। भगवा रंग त्याग, ज्ञान, पवित्रता और तेज का प्रतीक है। यज्ञ की ज्वाला से निकली अग्नि शिखाओं के लिए केसरिया रंग है । यही भगवा रंग कई बार देश की ख़ातिर केसरिया बाना में बदल जाता है । इसे ही वेदों में अरुणाः सन्तु केतवः कहा गया है, जहाँ ध्वज का रंग हल्दी जैसे रंग का होता है । आदिकाल के सभी चक्रवर्ती राजाओं, सम्राटों, महाराजाओं, धर्मगुरुओं और सेनानायकों का ध्वज भगवा ही रहा था। राजा रघु हो या राम, अर्जुन हो या चन्द्रगुप्त या वर्तमान में महाराणा प्रताप, शिवाजी या गुरुगोविन्द सिंह, सभी ने इसी ध्वज के तले धर्म की रक्षा के लिए संघर्ष किया। – पुस्तक की भूमिका से
Author: Dr. Mayank Murari
Publisher: Vani Prakashan
ISBN-13: 9789357759564
Language: Hindi
Binding: Paperbacks
No. Of Pages: 131
Country of Origin: India
International Shipping: No
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