Description
आन्दोलन समाज के विकसित होने की प्रक्रिया में जन्म लेते हैं, अपनी तरह से अपने युग की समस्याओं को समझने और सुलझाने का सामूहिक प्रयत्न करते हैं और अन्ततः अपना दाय इतिहास को देकर समाप्त हो जाते हैं तब तक के लिए जब तक कि कोई दूसरा आन्दोलन जन्म न लें।
भारत जैसे विशाल, प्राचीन, बहुभाषीय, बहुल सांस्कृतिक और विभिन्न परिवेशीय देश में जन आन्दोलन के विविध रूप रहे हैं। उन्हें समग्र रूप से देखने का यह सम्भवतः प्रथम प्रयास है।
भारतीय सामाजिक आन्दोलनों का यह अध्ययन हमें कई चैंकाने वाले निष्कर्षों तक पहुँचाता है। जिन्हें हम अनपढ़, जंगली और असभ्य समझते रहे, जन-चेतना की चिनगारियाँ भी वहीं से फूटती रहीं और उनका नेतृत्व भी वहीं से उदित हुआ। यह एक स्मरणीय ऐतिहासिक सबक है जिसकी हमें भविष्य में आवश्यकता पडे़गी।
प्रस्तुत पुस्तक में सामाजिक आन्दोलनों का अध्ययन ऐतिहासिक और प्रादेशिक दोनों आधारों पर किया गया है। यह हमें बताता है कि हमारा प्रदेश और भाषाएँ चाहे जितनी भी अलग रही हों, हमारे दुःख, हमारी चिन्ताएँ, हमारे विचार एक से रहे हैं। इसके अतिरिक्त समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से प्रस्तुत यह अध्ययन अनेक नवीन शोध को भी आमंत्रित करता है।
आशा है, यह पुस्तक समाजशास्त्र के विद्यार्थियों के लिये उपयोगी एवं रूचिकर सिद्ध होगी।
Author: V.N. Singh And Janmejay Singh
Publisher: Rawat Publication
ISBN-13: 9788170339731
Language: Hindi
Binding: Paperback
Product Edition: 2020
No. Of Pages: 305
Country of Origin: India
International Shipping: No
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