Description
ब्रिटिश इतिहासकारों की साम्राज्यवादी धारा द्वारा प्रस्तुत मध्यकालीन भारतीय इतिहास की व्याख्या ने अपरिहार्य रूप से हिन्दू और मुसलिम साम्प्रदायिक मतवादों को जन्म दिया। दोनों ही मतवाद ब्रिटिश इतिहासकारों के विरुद्ध क्षमायाचकों के रूप में उभरकर सामने आये किन्तु ऐसे क्षमायाचक जिन्होंने ब्रिटिश मत की बुनियादी अवधारणाओं को स्वीकार किया। उनका तर्क केवल यह रहा कि जो भी गलत कार्य किये गये, उनकी ज़िम्मेदारी उनके समुदाय की नहीं थी। उन्होंने सारा दोष दूसरे समुदाय के मत्थे मढ़ दिया। अब दोनों ही मत पूर्ण परिपक्वावस्था को प्राप्त कर चुके हैं और उनका अब एक ऐसा स्थिर ढाँचा बन चुका है जिसके निर्माण में अनेक विद्वानों ने अपना योगदान दिया है। यह तो नहीं कहा जा सकता कि धार्मिक संवेगों तथा दोनों समुदायों के बीच के सम्बन्धों के स्वरूप से सम्बद्ध सभी महत्त्वपूर्ण प्रश्नों के सन्दर्भ में अन्तिम शब्द कहा जा चुका है। अभी भी जो रिक्त स्थान छूट गये हैं : वर्गचेतना का स्तर, धार्मिक तथा धर्मवैज्ञानिक विचारों के विकास जैसी बातों की सावधानीपूर्वक जाँच की जानी चाहिए। “इरफ़ान हबीब (1931) भारत के अन्तरराष्ट्रीय स्तर के इतिहासकार हैं। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से इतिहास में एम.ए. करने के बाद ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय (इंग्लैंड) से उन्होंने डी. लिट् की उपाधि ली है। ऐग्रेरियन सिस्टम ऑफ़ मुग़ल इंडिया जैसी विश्वविख्यात पुस्तक लिखने के अलावा एन अटलस ऑफ़ मुग़ल एम्पायर (1982) भी तैयार किया है। सौ से ऊपर शोध-पत्र लिखे हैं और कुछ महत्त्वपूर्ण पुस्तकों का सम्पादन किया है। वे पीपुल्स हिस्ट्री ऑफ़ इंडिया श्रृंखला के प्रधान सम्पादक हैं।
Author: Ramesh Rawat
Publisher: Vani Prakashan
ISBN-13: 9789355181909
Language: Hindi
Binding: Hardbound
Product Edition: 2022
No. Of Pages: 332
Country of Origin: India
International Shipping: No
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