Description
आधुनिक भारत की संस्कृति पर संकट है। भरत, भरतजन के अस्तित्व पर संकट है। कोई पूछे कि कहा गये भरतवंशी? विश्वामित्र, अंगिरस, वशिष्ठ, श्वेतकेतु, इक्ष्वाकु, दशरथ, व्यास और रामकृष्ण के वंशज? कहाँ गई वेदवाणी? कहा गया उपनिषद् का दर्शन? कहाँ गये आदि शंकराचार्य? सब तरफ यूरोप, अमेरिका। कहाँ गये चाणक्य? एलोपैथी सिर पर सवार है। कहाँ गए चरक? भोग संसस्कृति घर-आँगन मेंं है। कहाँ गया हिरण्यगर्भ और पतंजलि का योग? मार्क्सवाद, पूँजीवाद का प्रेत पीछा कर रहा है। कहाँ गए कपिल, कणाद? गंगा कचरा-पेटी बन रही है। कहाँ गये भगीरथ के लोग। यमुना गंदगी से भरपूर है, कहाँ गये कान्हा? पर्यावरण प्रदूषण का नाग कौन नाथेगा? ऐसे सभी प्रश्न हृदय के मर्मस्थल पर तीर की तरह चुभते हैं। इन सबका उत्तर है—प्राचीन वैदिक दर्शन का ज्ञान, भारतीय संस्कृति का संवद्र्धन और संरक्षण। संस्कृति के प्रति आग्रही गौरवबोध और इतिहासबोध। इस ग्रन्थ में कुल 25 लेख हैं। सभी लेख भारतीय संस्कृति के इर्द-गिर्द घूम रहे हैं। वास्तव में यह पुस्तक भारतीय संस्कृति, धर्म और दर्शन की पुर्नप्रस्तुति है। भारतीय संस्कृति से ही भारत है। विदेशी प्रयास भारतीयों को भारत से अलग करने का है। इस पुस्तक का प्रयोजन है-महापुरुषों के मार्ग की ओर संकेत करना, श्रेष्ठजनों के आचरण से भारतीय जन को परिचित कराना और सनातन भारत की मेधा की खोज करना। पुस्तक में इतिहास की व्याख्या नहींं है। यहाँ भारतीय संस्कृति के मूलस्रोतों, उसे प्रवाहित करनेवाले प्रतीकों/ग्रन्थों/प्राचीन महापुरुषों की संक्षिप्त भूमिका प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। इसीलिए इस पुस्तक का नाम भारतीय संस्कृति की भूमिका है।
Author: Hridaynarayan Dikshit
Publisher: Vishwavidyalaya Prakashan
ISBN-13: 9789351461821
Language: Hindi
Binding: Hardbound
Product Edition: 2017
No. Of Pages: 219
Country of Origin: India
International Shipping: Yes
Reviews
There are no reviews yet.