Description
भारतीय ग्रामीण समाज अनेक सामाजिक संरचनात्मक एवं व्यवस्थामूलक अन्तर्विरोधों का प्रतिनिधित्त्व करता है। ‘‘ग्रामीण समाज एक सरल समाज है’’ जैसे समाजशास्त्रीय मिथकों का वर्चस्व एक लम्बे अर्से तक समाजशास्त्र के विद्यार्थियों की चेतना को निर्मित करता रहा है। प्रस्तुत पुस्तक भारतीय गांव के उस अन्तर्विरोधी चरित्र को वैज्ञानिक दृष्टि से व्यक्त करती है जिसके मूल में द्वन्दात्मक एकता का तत्त्व क्रियाशील है।
ग्रामीण समाज में व्याप्त शोषण, दमन, सामन्ती संस्कृति पर केन्द्रित असमानता, नगरीय क्षेत्रों द्वारा गांव का कच्चे माल के बाजार के रूप में उपयोग, निर्धनता का जीवन और उससे जूझता हुआ सीमान्त कृषक एवं भूमिहीन कृषक-श्रमिक इत्यादि पक्ष इस पुस्तक को ‘जीवन्त समाजशास्त्र’ का अंग बनाते हैं।
यह पुस्तक ‘आनुभविक साक्ष्यों’ पर आधारित एक प्रमाणित दस्तावेज है जो समाज विज्ञान के विद्यार्थियों में न केवल वैचारिक उत्तेजना उत्पन्न करती है अपितु उन्हें उन सामाजिक सरोकारों का अहसास कराती है जिनकी मूर्त अभिव्यक्ति आन्दोलनात्मक स्वरुप लिए होती है।
सरल भाषा में मार्क्सवादी चिन्तन को आधार बना कर लिखी गयी यह पुस्तक उस प्रत्येक अध्येता के लिए महत्त्व रखती है जो भारतीय समाज की उभरती एवं विकसित होती हुई सामाजिक-आर्थिक विसंगतियों को अत्यन्त निकटता से जानने का इच्छुक है और जन आकांक्षाओं के अनुरूप सामाजिक परिवर्तन लाने में ज्ञान एवं विचारधारा की भूमिका को स्वीकारता है।
Author: A.R. Desai
Publisher: Rawat Publication
ISBN-13: 9788170333906
Language: Hindi
Binding: Paperback
Product Edition: 2020
No. Of Pages: 283
Country of Origin: India
International Shipping: No
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