Description
संस्कृत और हिन्दी के प्रख्यात साहित्यकार एवं प्रखर चिन्तक राधावल्लभ त्रिपाठी की मान्यता है कि कविता या साहित्य के सारे सिद्धान्त लोक और जीवन से जुड़े हैं । साहित्य का उत्स भी वह जीवन को मानते हैं इसलिए उनकी यह मान्यता भी समीचीन है कि साहित्य की व्याख्या के लिए रचे गए सिद्धान्तों का भी लोक और जीवन मूल है । इस महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ में भारतीय काव्यशास्त्र के सभी सिद्धान्तों का आधुनिक परिप्रेक्ष्य में सोदाहरण विवेचन किया गया है । साहित्य का स्वरूप और प्रयोजन, साहित्य की विधाएं, शब्दवृत्ति, रस, ध्वनि, लक्षण, गुण और रीति, वक्रोक्ति, अलंकार, औचित्य तथा काव्यदोष, सिद्धान्तों का सुबोध रूप में परिचय देते हुए उनका परीक्षण तो इस ग्रन्थ में है ही, संस्कृत काव्यशास्त्र की अनेक कोटियों की पुनर्व्याख्या भी की गई है । संस्कृत की प्राचीन व नवीन रचनाओं के साथ अनेक कालजयी विश्वप्रसिद्ध कृतियों को नवीन सिद्धान्तों के निकष के लिए प्रमाणस्वरूप विमर्श के साथ ही यहां हिन्दी के नए साहित्य से भी उदाहरण प्रस्तुत हैं ताकि पाठक साहित्य के समकालीन सन्दर्भों से परिचित हो सकें । सच पूछें, तो यह ग्रन्थ एक नवीन काव्यशास्त्र की पीठिका प्रस्तुत करता है । भारतीय काव्यशास्त्र को विस्तारित करते हुए उसे अद्यतन बनाने वाला यह ग्रन्थ ‘भारतीय साहित्यशास्त्र की नई रूपरेखा’ साहित्य के अध्येताओं, शोधार्थियों, अध्यापकों व रचनाकारों के लिए भी संग्रहणीय है ।
Author: Radhavallabh Tripathi
Publisher: Samayik Prakashan
ISBN-13: 9789393232229
Language: Hindi
Binding: Paperback
Product Edition: 2022
No. Of Pages: 352
Country of Origin: India
International Shipping: No
Reviews
There are no reviews yet.