Description
सामाजिक व्यवस्थाओं का विश्लेषण मूल समाजशास्त्रीय ज्ञान की पूर्व शर्त है ताकि यह जाना जा सके कि समाज के संगठन का स्वरूप व उसके परिवर्तन की दिशा क्या है? समाज व सम्बद्ध सामाजिक व्यवस्थाएं केवल व्यक्तियों की समष्टि नहीं हैं अपितु सम्बन्धों व परिसीमाओं की गत्यात्मक जटिलता भी है। समाज में परिवर्तन सामाजिक व्यवस्थाओं की क्रियाशीलता की स्थितियों को बदल देता है, अतः उन्हें अपने को समायोजित करना पड़ता है।
क्या भारतीय समाज में अराजकता और मानकशून्यता की स्थिति उत्पन्न हो रही है?
आज भारतीय समाजशास्त्र के सम्मुख यह अहम् सवाल है जिसका उत्तर देना समाजशास्त्रियों का दायित्व है। हमारे समाज में अन्तर्धार्मिक व अन्तर्जातीय संघर्ष जटिल हुए हैं। राजनीति का धर्मीकरण और धर्म का राजनीतिकरण हो गया है। धर्मनिरपेक्षता के विचार पर प्रहार हो रहा है और साम्प्रदायिकता की धारणाएं नवीन संदर्भों के साथ विकसित हो रही हैं। ऐसा लगता है कि आज समाज में एकता और अखण्डता का आधार टूट रहा है। इन स्थितियों के बावजूद भी विकास और आधुनिकीकरण सम्बन्धी हमारी आकांक्षाएं मिथ्या सिद्ध नहीं हुई हैं। परम्परागत सामाजिक व्यवस्थाएं पूर्णरूपेण विघटित नहीं हुई हैं। इन्होंने केवल पुराने आधार पर परिचालन न कर सकने के कारण स्वयं को नये परिवेश में अनुकूलित किया है।
इस पुस्तक में भारतीय समाज में उप-व्यवस्थाओं के समायोजन की प्रकृति को व सामाजिक परिवर्तन के प्रतिमानों को आंकने का प्रयास किया गया है। पुस्तक परिवर्तन सम्बन्धी प्रवृत्तियां इंगित करती है तथा उन आकस्मिक, अल्पकालिक व अव्याख्येय परिवर्तनों की भी पहचान करती है जिन्हें मतभेद समर्थक व विच्छेदकारी प्रवृत्तियों के रूप में अंकित किया गया है।
Author: Ram Ahuja
Publisher: Rawat Publication
ISBN-13: 9788170332688
Language: Hindi
Binding: Paperback
Product Edition: 2021
No. Of Pages: 393
Country of Origin: India
International Shipping: No
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