Description
जिस दिन इस धर्मयुद्ध के लिए दोनों पक्ष सम्मत हुए, पूरुवंश के सिंहासन पर अभिषेक के लिए पंचतीर्थों के पवित्र जल की बजाय मनुष्य के ताजा और उष्ण रक्त डालने को सन्नद्ध हुए उस दिन क्या नियति की अदृश्य चोट नहीं सही मैंने? जीवन भर काँटों का मुकुट पहनकर पृष्ठ भाग में खड़ा रहा, काँटों भरी राह पर चला, बारंबार रक्ताक्त हुआ। मन और आत्मा दोनों बार- बार घायल हुए हैं। यह दुःखद इतिहास कोई नहीं जानता। कौरवों की सुख-सुविधा और सुरक्षा के लिए स्वयं ढाल बनकर सन्नद्ध रहा; परंतु नहीं बचा सका उन्हें। सब सहकर भी विफल रहा। यह विफलता ही मेरी पराजय है। यह पराजय ही मेरा पतन है। यह पतन ही मेरी मृत्यु है!
आत्मकथात्मकशैली में लिखा गया यह उपन्यास पितामह भीष्म के संपूर्ण जीवन की गाथा है। अपनी भीषण प्रतिज्ञा केकारण वे देवव्रत से ‘भीष्म’ कहलाए। वे कौरवों और पांडवों में वरिष्ठ, ज्येष्ठ, अग्रगण्य व पूज्य थे। संपूर्ण आर्यावर्त उनकेबल-विक्रम से परिचित था। महर्षि परशुराम जैसे प्रचंड योद्धा भी उन्हें युद्ध में पराजित न कर सके थे।. .फिर भी उनका जीवन कितनी विवशताओं और प्रवचनाओं से भरा था!
यथार्थत: पितामह भीष्म की मार्मिक एवं हृदयस्पर्शी जीवन-गाथा है यह कृति।
Author: Laxmipriya Acharya
Publisher: Pratibha Pratishthan
ISBN-13: 9789386001436
Language: Hindi
Binding: Hardbound
No. Of Pages: 312
Country of Origin: India
International Shipping: No
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