Description
हिंदी-साहित्य के इतिहास में छायावाद की चर्चा शुरू से ही अपने चरम पर थी। इसके दो मुख्य कारण हो सकते हैं। पहला- छायावाद का नामकरण एवं दूसरा उसकी प्रवृत्तियों का विश्लेषण। दोनों ही शर्तों में छायावाद केंद्रियता का विषय बना रहा। इसलिए विद्वानों ने अपनी सूझ-बूझ के साथ छायावाद के शोध कार्य में जुट गये। छायावाद के प्रारम्भिक दौर में ही आचार्य शुक्लजी जैसे मेधावी आलोचक अपनी सीमाओं के कारण छायावादी काव्य को संकुचित अर्थ में देखने लगे। छायावादी काव्यधारा को मात्र एक शैली का आंदोलन कह कर चुप हो गये। यही हाल कुछ हद तक पंडित महावीर प्रसाद द्विवेदी जी का भी रहा। वे भी छायावाद को ठीक-ठीक अर्थ में नहीं समझ सके।
Author: Shashikala Tripathi
Publisher: Sasta Sahitya Mandal
ISBN-13: 9789390872749
Language: Hindi
Binding: Hardbound
Product Edition: 2021
No. Of Pages: 391
Country of Origin: India
International Shipping: No
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