Description
समकालीन दलित साहित्य काफ़ी हद तक इस प्रगतिशील मार्ग पर उन्मुख है। दलित साहित्य पुरानी परिपाटी, सड़ी-गली मान्यताओं को रौंदते हुए एक नये मानवीय साहित्य और मानवीय समाज संरचना के निर्माण की ओर अग्रसर है लेकिन गति थोड़ी धीमी है और उसकी सामाजिक विज्ञप्ति भी सीमित है। इसी कारण दलित साहित्य की ठीक जानकारी गैर-दलित समाज में कम है और जो जानकारी है वह भ्रमित करने वाली है।
Author: P. Ravi, V.G. Gopalkrishnan
Publisher: Vani Prakashan
ISBN-13: 9789388684255
Language: Hindi
Binding: Hardbound
Product Edition: 2019
No. Of Pages: 248
Country of Origin: India
International Shipping: No
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