Description
मनुष्य हर समय अँधेरे और उजाले के बीच अपनी जगह की तलाश में भटकता रहता है। बीसवीं शताब्दी का उत्तरार्द्ध दूसरे महायुद्ध के भीषण नरसंहार के बाद भी बहुत सारी तानाशाहियों और अत्याचारों की गिरफ़्त में रहा। संसार भर की कविता ने युद्ध के बाद की राहत के ठण्डे उजाले में बढ़ते हुए अँधेरे को पहचानने की कोशिश की। इस कोशिश में आधुनिक पोलिश कविता ने दो तानाशाहियों और मनुष्य द्वारा मनुष्य पर की जा रही क्रूरताओं और मानवीय अपमान और विडम्बना और इतिहास के विद्रूपों का प्रतिरोध करने और उनके लिए मार्मिक रूपक गढ़ने का दुस्साहस किया। उसकी अजेय कल्पनाशीलता, अदम्य जिजीविषा और भाषा को सर्वथा अप्रत्याशित इलाक़ों में ले जाने की रचनात्मक क्षमता ने जो कविता रची वह विलक्षण, अप्रतिम और अत्यन्त मार्मिक है। उसमें संवेदना की गहराई और वैचारिक सघनता के बीच कोई फाँक नहीं है। पोलिश विदुषी रेनाता चेकाल्स्का के साथ मिलकर ऐसे चार महाकवियों के हिन्दी अनुवाद अब एकत्र प्रस्तुत करते हुए प्रसन्नता है। संयोगवश 2011 चेस्लाव मीलोष की जन्मशती का वर्ष भी है।
Author: Ashok Vajpeyi
Publisher: Vani Prakashan
ISBN-13: 9789350007020
Language: Hindi
Binding: Hardback
No. Of Pages: 320
Country of Origin: India
International Shipping: No
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