Description
परसाई जैसा बड़ा रचनाकार जब ‘हम इक उम्र से वाक़िफ़ हैं’ होने की बात करता है तो उसका मतलब सिर्फ़ उतना ही नहीं होता, क्योंकि उसकी ‘उम्र’ एक युग का पर्याय बन चुकी होती है। इसलिए यह कृति परसाई जी के जीवनालेख के साथ-साथ एक लम्बे रचनात्मक दौर का भी अंकन है। परसाई जी ने इस पुस्तक में अपने जीवन की उन विभिन्न स्थितियों और घटनाओं का वर्णन किया है, जिनमें न केवल उनके रचनाकार व्यक्तित्व का निर्माण हुआ, बल्कि उनकी लेखनी को भी एक नई धार मिल सकी। उनका समूचा जीवन एक सक्रिय बुद्धिजीवी का जीवन रहा। वे सदा सिद्धान्त को कर्म से जोड़कर चले और अपनी रचनात्मकता पर काल्पनिक यथार्थवाद की छाया तक नहीं पड़ने दी। इसलिए आकस्मिक नहीं कि इस पुस्तक में हम उन्हें विभिन्न आन्दोलनरत संगठनों के कुशल संगठनकर्ता के रूप में भी देख पाते हैं। इसके अलावा यह कृति उनकी सहज व्यंग्यप्रधान शैली में विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत व्यक्तियों से भी परिचित कराती है, जो किसी भी तरह उनसे जुड़े। कहना न होगा कि परसाई जी का यह संस्मरणात्मक आत्मकथ्य उन तमाम पाठकों और रचनाकारों के लिए प्रेरणाप्रद है जो कि एक बुनियादी सामाजिक बदलाव में साहित्यकार की भी एक रचनात्मक भूमिका को स्वीकार करते हैं।
Author: Harishankar Parsai
Publisher: Rajkamal Prakashan
ISBN-13: 9789388183543
Language: Hindi
Binding: Paperbacks
Product Edition: 2022
No. Of Pages: 143
Country of Origin: India
International Shipping: No
Reviews
There are no reviews yet.