Description
राजेन्द्र जी के सम्पादकीयों की तरह ही साक्षात्कार भी उसकी प्रतिबद्धताओं, पक्षधरताओं, चिंतन की बारीकियों को हमारे सामने लाते हैं, इन साक्षात्कारों के द्वारा जहाँ हम उनके व्यक्तित्व की संपूर्ण रेखाओं, उतार-चढ़ावों को समझ सकते हैं, वहीं व्यक्तिगत ज़िन्दगी की चंद अंतरंग कतरनें भी अपना चेहरा झलका जाती हैं। चर्चित साक्षात्कार ‘यह अंत मेरा नहीं…’ (ओमा शमा) के विवाद में बने रहने का एकमात्र कारण यह ‘अंतरंग’ ही थी, जिसको लेकर उत्साही पाठक उड़ चले थे और सबका उसे पचा पाना मुश्किल हो गया था। लगभग साल-भर साहित्यिक पत्रिकाओं/ पत्रों में बहस का केन्द्र बने रहने वाले इस इण्टरव्यू के कई गम्भीर मुद्दे… कुछ मार्मिक प्रसंग इसी सस्ती, कहीं-नहीं प्रतिशोधी बहसबाज़ी और सनसनी की भेंट चढ़ गये। ईमानदारी और आत्मविश्लेषण की वह जबर्दस्त उपस्थिति, आक्षेपबाज़ी के धूल-धक्कड़ में राजेन्द्र जी द्वारा सिर्फ अपना पक्ष रखने में विश्वास करने के साहस, बौद्धिक साहित्यिक विरासत की चिन्ता, अपनी गलती को निस्संकोच स्वीकारने और उत्तेजना भी अब इतनी ठण्डी कर दी है कि समग्र परिप्रेक्ष्य में और ईमानदारी से इसे जाँचा जा सके। इसीलिए मन्नू जी, अर्चना जी, निर्मला जैन आदि की महत्त्वपूर्ण प्रतिक्रियाएँ (और कुछ पाठकीय प्रतिक्रियाएँ भी) यहाँ दी जा रही हैं, ताकि इसे एक सम्पूर्ण बहस की छवि दी जा सके।
Author: Rajendra Yadav
Publisher: Vani Prakashan
ISBN-13: 8181430883
Language: HINDI
Binding: HARD BOUND
No. Of Pages: 267
Country of Origin: INDIA
International Shipping: Yes
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