Description
प्रख्यात विद्वान डॉ. भगवतशरण उपाध्याय का यह ग्रन्थ सामाजिक दृष्टिकोण से महाकवि कालिदास के अध्ययन की पहली चेष्टा है। यह एक कवि की विवेचना भर नहीं है, इसमें तत्कालीन भारत की भौगोलिक स्थिति, शासन-व्यवस्था तथा सामाजिक ढाँचे का वस्तुपरक मूल्यांकन भी किया गया है। इसमें ललित कलाओं, शिक्षा-साहित्य और धर्म-दर्शन की चर्चा करते हुए एक विशेष कालखण्ड की सांगोपांग समझने की सार्थक चेष्टा है। इस ग्रन्थ में उपाध्याय जी ने कालिदास के काल-निर्णय पर भी विशेष रूप से विचार किया है। महाकवि कालिदास के सृजन का ऐसा मार्मिक विवेचन और उनके माध्यम से अतीत का ऐसा विशद चित्रण और उत्कर्ष की व्यंजना प्रस्तुत कृति को अत्यन्त विशिष्ट बनाती है। सृजनधर्मी स्वरूप का परिचय तो है ही, अतीत के उत्कर्ष का वर्णन भी है। इस पुस्तक का केवल ऐतिहासिक महत्त्व नहीं है, यह एक विश्वकवि और उसके समय को जानने समझने की दृष्टि से आज भी उपादेय है। विविध सामयिक सन्दर्भों तथा प्रयुक्त उपादानों के बारीक विश£ेषण से उपाध्याय जी के श्रम और असाधारण पाण्डित्य की ओर सहज ही ध्यान आकर्षित होता है।
Author: Bhagvatsharan Upadhyaya
Publisher: Bharatiya Jnanpith
ISBN-13: 9788126320103
Language: Hindi
Binding: Hardbound
Product Edition: 2016
No. Of Pages: 500
Country of Origin: India
International Shipping: No
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