Description
प्रेमचंद साहित्य में ‘कर्मभूमि’ उपन्यास का अपनी क्रांतिकारी चेतना के कारण, विशेष महत्त्व है। यह उस दौर की कहानी है जब देश गुलाम था। लोग अंग्रेजों के जुल्म के शिकार हो रहे थे। हर कहीं जनता उठ रही थी। उसको रोकना अथवा संयमित करना असंभव था। यह असाधारण जन-जागरण का युग था। नगरों और गांवों में, पर्वतों और घाटियों में, सभी जगह जनता जाग्रत और सक्रिय थी। कठोर से कठोर दमन-चक्र भी उसे दबा नहीं सका। यह विप्लवकारी भारत की गाथा है। गोर्की के उपन्यास, ‘मां’ के समान ही यह उपन्यास भी क्रांति की कला पर लगभग एक प्रबन्ध ग्रंथ है।कथा पर गांधीवाद का प्रभाव बहुत स्पष्ट है। अहिंसा पर बार-बार बल दिया गया है। साथ ही इस उपन्यास में एक क्रांतिकारी भावना भी है, जो किसी भी प्रकार समझौतापरस्ती के खिलाफ है। समालोचक इस उपन्यास को मुंश प्रेमचंद की सबसे क्रांतिकारी रचना मानते हैं। About the Author धनपत राय श्रीवास्तव (31 जुलाई 1880 – 8 अक्टूबर 1936) जो प्रेमचंद नाम से जाने जाते हैं, वो हिन्दी और उर्दू के सर्वाधिक लोकप्रिय उपन्यासकार, कहानीकार एवं विचारक थे। उन्होंने सेवासदन, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, निर्मला, गबन, कर्मभूमि, गोदान आदि लगभग डेढ़ दर्जन उपन्यास तथा कफन, पूस की रात, पंच परमेश्वर, बड़े घर की बेटी, बूढ़ी काकी, दो बैलों की कथा आदि तीन सौ से अधिक कहानियाँ लिखीं। उनमें से अधिकांश हिन्दी तथा उर्दू दोनों भाषाओं में प्रकाशित हुईं। उन्होंने अपने दौर की सभी प्रमुख उर्दू और हिन्दी पत्रिकाओं जमाना, सरस्वती, माधुरी, मर्यादा, चाँद, सुधा आदि में लिखा। उन्होंने हिन्दी समाचार पत्र जागरण तथा साहित्यिक पत्रिका हंस का संपादन और प्रकाशन भी किया। इसके लिए उन्होंने सरस्वती प्रेस खरीदा जो बाद में घाटे में रहा और बन्द करना पड़ा। प्रेमचंद फिल्मों की पटकथा लिखने मुंबई आए और लगभग तीन वर्ष तक
Author: Munshi Premchand
Publisher: Diamond Pocket Books (Pvt.) Ltd.
ISBN-13: 9788171822522
Language: Hindi
Binding: Paperbacks
No. Of Pages: 278
Country of Origin: India
International Shipping: No
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