Description
कबीर ने बड़ा प्यारा प्रतीक चुना है। जिस पंदिर की तुम तलाश कर रहे हो, वह तुम्हारे कुंडल में बसा है, वह तुम्हारे ही भीतर है, वह तुम ही हो। और जिस परमात्मा की तुम मूर्ति गढ़ रहे हो, उसकी मूर्ति गढ़ने की कोई जरूरत ही नहीं, तुम ही उसकी मूर्ति हो। तुम्हारे अंतर-आकाश में जलता हुआ उसका दीया, तुम्हारे भीतर उसकी ज्योतिर्मयी छवि मौजूद है। तम मिट्टी के दिये भला हो ऊपर से, भीतर तो चिन्मय की ज्योति है। मृण्यम होगी तुम्हारी देह, चिन्मय है तुम्हारा स्वरूप। मिट्टी के दीये तुम बाहर से हो, ज्योति थोडे़ ही मिट्टी की है। दीया पृथ्वी का है, ज्योति आकाश की है दीया संसार का है, ज्योति परमात्मा की है।
Author: Osho
Publisher: Diamond Pocket Books (Pvt.) Ltd.
ISBN-13: 9789351656326
Language: Hindi
Binding: Paperbacks
Country of Origin: India
International Shipping: No
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