Description
विवेचन किया गया है। इसमें मानवीय सौन्दर्य के साथ आराध्य के दिव्य सौन्दर्य का भी वर्णन है। सौन्दर्य की उदात्तता का सौन्दर्य भी खोजने का प्रयास किया गया है। राधा की नित्य नवीनता का परिचय देकर सूर ने जिस सौन्दर्य को वाणी दी है, उसका कोई सानी नहीं है। सौन्दर्य बोध के निर्धारक तत्त्वों के आधार पर सूर की काव्यवस्तु और भावाभिव्यंजना को भक्ति और सौन्दर्य के सन्दर्भ में अभिव्यंजित करना परमावश्यक है। प्रायः हम सूर को वात्सल्य और शृंगार रस के सम्राट के रूप में ही व्याख्यायित करते आये हैं जबकि उनका मूल्यांकन मधुरा भक्ति और सौन्दर्य चेतना के सन्दर्भ में किया जाना अत्यावश्यक है। तभी हम कवि के मूल लक्ष्य और उसकी रचनात्मक प्रवृत्तियों से साधारणीकृत हो पायेंगे। मानवीय संस्पर्शों के साथ सौन्दर्य के आलोक में वस्तु, भाव और कलात्मक बोध की अनुभूति कराना इस पुस्तक का उद्देश्य है। सौन्दर्य के समस्त सोपानों का अवगाहन करने में मेरी लेखनी कितनी सफल हो पायी है, इसका निर्णय तो सौन्दर्यचेत्ता विद्वत्जन ही कर पायेंगे।
Author: Prof. Manjula Rana
Publisher: Prof. Manjula Rana
ISBN-13: 9.78939E+12
Language: Hindi
Binding: Hardbound
No. Of Pages: 216
Country of Origin: India
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