Description
इक्कीसवीं सदी के पहले दशक की कहानी को समझने के लिए विजयमोहन सिंह ने ‘नया ज्ञानोदय’ के अपने स्तम्भ में एक बहुत उपयोगी सूत्र दिया था कि ‘साठोत्तरी दौर’ तक हिन्दी कहानी का मनुष्य अपनी पहचान तलाश रहा था, जबकि आज का आदमी अपनी असली पहचान छुपाने लगा है। ‘नौ लम्बी कहानियाँ’ आज के समय व समाज के यथार्थ को अपनी-अपनी तरह से अभिव्यक्त करती विशिष्ट रचनाएँ हैं। अखिलेश की कहानी ‘श्रृंखला’ बताती है कि अगर व्यवस्था को कोई विचार रास नहीं आता तो वह अपनी दमनकारी परियोजना के अधीन उसे नष्ट करने में सक्रिय हो जाता है। कुणाल सिंह की कहानी ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे’ हो या पंकज सुबीर की ‘चौथी, पाँचवीं तथा छठी क़सम’—दोनों आज के युवावर्ग के संघर्षों, अन्तर्विरोधों, संवेदनाओं, सामाजिक-आर्थिक स्थितियों को उजागार करती हैं। शशिभूषण द्विवेदी की कहानी ‘कहीं कुछ नहीं’ भी चौंकाती है। एक औपन्यासिक आख्यान को उन्होंने एक लम्बी कहानी के कलेवर में समेट लिया है। गौरव सोलंकी ‘ग्यारहवीं ए के लड़के’ में इल्यूज़न और रियलिटी, प्रेम और काम, यथार्थ और फ़ैंटेसी की जुगलबन्दी करते चलते हैं। ‘आज रंग है’ वन्दना राग की महत्त्वाकांक्षी कहानी है। एक कोमल-सी प्रेम कथा आज की राजनीति की तरह ख़ूनी नृशंसता में तब्दील हो जाती है। विमलचन्द्र पाण्डेय अपनी कहानी में साम्प्रदायिकता के प्रश्न से जूझते हैं। श्रीकान्त दुबे की ‘गुरुत्वाकर्षण’ में महानगरीय आपाधापी के बीच प्रेम के कोमल रूप को बचाने की ज़िद है। उमा शंकर चौधरी ‘मिसेज़ वाटसन की भुतहा कोठी’ में परम्परा के दायरे में घुटती इच्छाओं का विश्लेषण करते हैं। इस तरह ये सभी कहानियाँ आज के युवा वर्ग की कहानियाँ हैं, जो भूमण्डलीकरण के बाद बदलते हुए दौर में भारत के नौजवानों की मानसिकता को समझाने में मदद करती हैं।
Author: Ravindra Kaliya
Publisher: Bharatiya Jnanpith
ISBN-13: 3358-1, 9788126330027
Language: Hindi
Binding: Paperbacks
No. Of Pages: 271
Country of Origin: India
International Shipping: No
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