Description
“पूर्णावतार – सर्वतोमुखी प्रतिभा के धनी, बांग्ला के प्रख्यात साहित्यकार प्रमथनाथ बिशी से हिन्दी के पाठक अपरिचित नहीं हैं। बिशी के ‘केरी साहब का मुंशी’, ‘लाल क़िला’, ‘जोड़ादीघी के चौधरी’ आदि उपन्यास हिन्दी में बहुत लोकप्रिय हुए हैं। ‘पूर्णावतार’ उनका अन्यतम उपन्यास है, जिसकी विषयवस्तु ‘महाभारत’ से ली गयी है। पूर्णावतार वासुदेव श्रीकृष्ण, जो साक्षात् ब्रह्म हैं, इस उपन्यास के नायक हैं। कथा में वे आद्योपान्त अदृश्य रहते हैं, किन्तु पाठक पग-पग पर उनका सान्निध्य पाता चलता है—अगोचर, फिर भी अनुभूति में व्याप्त। उपन्यास का सर्वाधिक करुण पात्र है वह व्याध—जरा, जिसके भ्रमित शर से कृष्ण का देहावसान होता है। जरा और उसकी पत्नी जस्ती के व्याकुल संसार का सृजन उपन्यास का वह नवीन आयाम है जिसकी कल्पना और जिसका मार्मिक चित्रण प्रमथ बाबू जैसे कृती और सुधी साहित्यकार ही सफलता से कर सकते थे। उपन्यास का आरम्भ होता है उस अन्तिम बिन्दु से जहाँ वासुदेव नहीं रहे और जहाँ राजनीतिक, सामाजिक उथल-पुथल के बीच विनाश की परिपूर्णता की प्रक्रिया प्रारम्भ होती है। करुणा के आकाश के नीचे क्रन्दन की धरती में बोया गया पश्चात्ताप का पादप कौन-सा फल देता है? मानव चाहता है मुक्ति, और मुक्ति है मृत्यु की गोद में, किन्तु क्या सचमुच मृत्यु के पथ से प्राप्त हो सकती है मुक्ति? पाप और पुण्य क्या हैं? मृत्यु का वरण ही क्या वास्तव में अन्त है या किसी प्रारम्भ की भूमिका? ऐसे अनेक प्रश्न हैं जो इस कृति को असाधारणता प्रदान करते हैं। पाठकों को समर्पित है उपन्यास का नया संस्करण, नये रूपाकार में। “
Author: Pramathanath Bishi
Publisher: Bharatiya Jnanpith
ISBN-13: 9789355184757
Language: Hindi
Binding: Hardbound
No. Of Pages: 320
Country of Origin: India
International Shipping: No
Reviews
There are no reviews yet.