Description
हमारे समय में हिन्दी में दार्शनिक विचार और लेखन बहुत विरल हो गया है। जिन थोड़े से व्यक्तियों ने, फिर भी, हिन्दी में मौखिक और विचारोत्तेक दार्शनिक चिन्तन किया है, उनमें मुकुन्द लाठ का नाम अग्रणी है। मुकुन्द जी ने दर्शन की एक पत्रिका उन्मीलन की स्थापना की और दशकों तक उसका सम्पादन करते रहे। उनकी वैचारिक रुचि और रुझानों का वितान बहुत व्यापक था और उसमें तत्त्वदर्शन के अलावा संगीत, साहित्य आदि शामिल थे। उनके दर्शन पर पाँच निबन्धों के इस संग्रह को रज़ा पुस्तक माला के अन्तर्गत प्रस्तुत किया जाना, एक तरह से, हिन्दी की वैचारिक सम्पदा में कुछ मूल्यवान् जोड़ने के बराबर है।
About the Author:
मुकुन्द लाठ जन्म : १९३७, कोलकाता में शिक्षा के साथ संगीत में विशेष प्रवृत्ति थी जो बनी रही। आप पण्डित जसराज के शिष्य हैं। अँग्रेज़ी में बी.ए. (ऑनर्स), फिर संस्कृत में एम.ए. किया। पश्चिम बर्लिन गये और वहाँ संस्कृत के प्राचीन संगीत- ग्रन्थ दत्तिलम् का अनुवाद और विवेचन किया। भारत लौट कर इस काम को पूरा किया और इस पर पी-एच.डी. ली। १९७३ से १९९७ तक राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर, के भारतीय इतिहास एवं संस्कृति विभाग में रहे। भारतीय संगीत, नृत्त, नाट्य, कला, साहित्य सम्बन्धी चिन्तन और इतिहास पर हिन्दी-अंग्रेज़ी में लिखते रहे। यशदेव शल्य के साथ दर्शन प्रतिष्ठान की प्रतिष्ठित पत्रिका उन्मीलन का सम्पादन और उसमें नियमित लेखन । प्रमुख प्रकाशन : ए स्टडी ऑफ़ दत्तिलम, हाफ़ ए टेल (अर्धकथानक का अनुवाद), द हिन्दी पदावली ऑफ़ नामदेव (कालावात के सहलेखन में), ट्रान्सफ़ॉरमेशन ऐज क्रिएशन, संगीत एवं चिन्तन, स्वीकरण, तिर रही वन की गन्ध, धर्म- संकट, कर्म चेतना के आयाम, क्या है क्या नहीं है। दो कविता-संग्रह अनरहनी रहने दो, अँधेरे के रंग के नाम से प्रमुख सम्मान व पुरस्कार पद्मश्री, शंकर पुरस्कार, नरेश मेहता वाङ्मय पुरस्कार, फेलो-संगीत अकादेमी। निधन : ६ अगस्त २०२०
Author: MUKUND LATH
Publisher: Setu Prakashan
ISBN-13: 9788196166557
Language: HINDI
Binding: PAPER BACK
Product Edition: 2023
No. Of Pages: 360
Country of Origin: INDIA
International Shipping: Yes
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