Description
सरहपा और तिलोपा क्रियाकांड और अनुष्ठान को धर्म नहीं कहते। तुम पूछते होः ‘कृपया बताएं कि उनके अनुसार धर्म क्या है?’
वैसा चैतन्य, जिसमें न कोई क्रियाकांड है, न कोई अनुष्ठान है, न कोई विचार है, न कोई धारणा है, न कोई सिद्धांत है, न कोई शास्त्र है। वैसा दर्पण, जिसमें कोई प्रतिछवि नहीं बन रही–न स्त्री की, न पुरुष की, न वृक्षों की, न पशुओं की, न पक्षियों की। कोरा दर्पण, कोरा कागज, कोरा चित्त…वह कोरापन धर्म है। उस कोरेपन का नाम ध्यान है। उस कोरेपन की परम अनुभूति समाधि है। और जिसने उस कोरेपन को जाना उसने परमात्मा को जान लिया।
ओशो
पुस्तक के कुछ मुख्य विषय-बिंदु
* सिद्ध सरहपा और तिलोपा का संदेश क्या है?
* योग को प्रेमपूर्वक जीने का क्या अर्थ है?
* भोग में योग, योग में भोग
* समूह-मनोचिकित्सा प्रयोग और ध्यान
* विवाहित जीवन के संबंध में आपके क्या खयाल हैं?
* इस जगत में सर्वाधिक आश्चर्यजनक नियम कौन सा है?
Author: Osho
Publisher: Diamond Pocket Books (Pvt.) Ltd.
ISBN-13: 9789390088706
Language: Hindi
Binding: Paperbacks
No. Of Pages: 384
Country of Origin: India
International Shipping: No
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