Description
कश्मीरी पंडितों के विस्थापन की पृष्ठभूमि में यह उपन्यास अपनी सांस्कृतिक जड़ों से विच्छिन्न मनों की पीड़ा तथा ग्लोबलाइजेशन से बौराए हमारे मौजूदा वक़्त की कथा है। एक तरफ़ लोग कहीं मजबूरन तो कहीं नए दौर के प्रवाह में अपनी जड़ों से उखड़ रहे हैं तो दूसरी तरफ़ जीना एक वैश्विक स्पर्धा होता जा रहा है।
कश्मीर से जान बचाकर निकला एक पंडित परिवार अपने जैसे अनेक लोगों के साथ राजधानी दिल्ली में आकर नए सिरे से जीवन शुरू करता है। धीरे-धीरे उनके पैर नई ज़मीन पर अपनी जगह भी बनाने लगते हैं लेकिन यह अहसास कि अगर हम अपने ही देश में शरणार्थी हैं तो फिर दुनिया में कहीं भी रहें, क्या फ़र्क़ पड़ता है; भावी पीढ़ी के लिए निर्णायक बन जाता है।
कश्मीरी संस्कृति और मूल्यों में रसे-पगे माता-पिता का प्रशिक्षण परिवार को बिखरने तो नहीं देता लेकिन अपने घर-ज़मीन से दूर, महानगरों के परायेपन में सम्बन्धों को उस तरह जीना भी सम्भव नहीं जैसे अपनी भूमि पर अपनी संस्कृति, अपने माहौल के बीच हो सकता था।
Author: Chandrakanta
Publisher: Rajkamal Prakashan
ISBN-13: 9789393768292
Language: Hindi
Binding: Hardbound
Product Edition: 2022
No. Of Pages: 198
Country of Origin: India
International Shipping: Yes
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