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Sant Rajjab / संत रज्जब (Hindi) By Dr. Nandkishor Pandey (9789351460282)

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Description

रज्जब भक्ति आन्दोलन के महत्त्वपूर्ण हस्ताक्षर हैं। दुर्भाग्य से भक्ति आन्दोलन के सन्दर्भ में हम जिन कवियों की चर्चा करते हैं उनमें रज्जब छूट जाते हैं। हिन्दी साहित्य के इतिहास में सर्वाधिक मुस्लिम कवि भक्तिकाल में हुए। रज्जब, रहीम और रसखान के बाद के हैं। जायसी जैसे सूफी कवि के भी बाद के। ये न रामभक्त कवि हैं न कृष्णभक्त। ये राम-रहीम और केशव-करीम की एकता के गायक हैं। निर्गुण संत हैं। दादूदयाल के प्रमुख शिष्यों में से एक। कबीर के बोध को जन-जन तक पहुँचाने में दादूपंथी संतों की बड़ी भूमिका है। संख्या की दृष्टि से दादू के जीवन में ही जितनी बड़ी संख्या में शिष्य-प्रशिष्य दादू के बने, सम्भवत: उतने शिष्य किसी अन्य संत के नहीं। दादूपंथी संतों में एक बहुत बड़ी संख्या पढ़े-लिखे संतों की है। जगजीवनदास जैसे शास्त्रार्थी, सुन्दरदास जैसे प्रकाण्ड शास्त्र पण्डित और साधु निश्चलदास जैसे दार्शनिक दादूपंथी ही थे। संत साहित्य के संरक्षण और संवर्धन की दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण कार्य दादूपंथियों ने किया। इन संतों ने अपने गुरु की वाणियों को संरक्षित तो किया ही, पूर्ववर्ती तमाम संतों की वाणियों का संरक्षण भी किया। ऐसे संतों में रज्जब का नाम महत्त्वपूर्ण है। रज्जब ने संग्रह, सम्पादन की नयी तकनीक विकसित की। सम्पूर्ण संत साहित्य को रागों और अंगों में विभाजित किया। विभिन्न अंगों में सम्बन्धित विषय की साखियाँ चुन-चुनकर रखी गयीं। यह बहुत बड़ा काम था। रज्जब ने यह काम तब किया जब अपने ही लिखे के संरक्षण की बात बहुत मुश्किल थी। रज्जब के संकलन में एक, दो, दस नहीं; 137 कवि हैं। एक ओर इस संग्रह में कबीर, रैदास जैसे पूर्वी बोली के संत हैं तो दूसरी ओर दादू, स्वयं रज्जब, वषना, गरीबदास, षेमदास, पीपा जैसे राजस्थानी बोलियों के संत हैं। नानक, अंगद, अमरदास पंजाबी भाषा-भाषी हैं तो ज्ञानदेव और नामदेव जैसे मराठी मूल के कवि भी इस संग्रह में हैं। अवधी और ब्रजभाषा में लिखने वाले संतों की बहुत बड़ी संख्या इस संग्रह में है। संस्कृत के महान आचार्यों यथा शंकराचार्य, भर्तृहरि, व्यास और रामानन्द को भी इस संग्रह में स्थान मिला है। इस संग्रह के कवि विभिन्न धर्म एवं सम्प्रदायों के हैं। ग्रंथों के ग्रंथन की एक सर्वथा नूतन पद्धति ‘अंग’ को अंगीकृत कर रज्जब ने संकलन-सम्पादन के क्षेत्र में मौलिक कार्य किया है। यह पद्धति अध्याय, सर्ग, उच्छ्वास उल्लास, अंक, तरंग, परिच्छेद, उद्योत, विमर्श से भिन्न तो है ही; समय, बोध, गोष्ठी, पल्लव और काण्ड से भी भिन्न है। सर्वथा पृथक् और नूतन। अंगों के साथ रागों का निबंधन इस ग्रंथन प्रक्रिया को और अधिक सूक्ष्म बनाता है।



Author: Dr. Nandkishor Pandey
Publisher: Dr. Nandkishor Pandey
ISBN-13: 9.78935E+12
Language: Hindi
Binding: Hardbound
No. Of Pages: 200
Country of Origin: India

Additional information

Weight 0.443 kg

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