Description
अनूठे गद्य में अपनी कथा–भाषा रचने वाली मनीषा कुलश्रेष्ठ का यह उपन्यास ‘शालभंजिका’ पढ़ने का अर्थ एक खास किस्म की ऐन्द्रिक अनुभूति।
यहां पाठक उपन्यास के चरित्र की तरह भावावेश में उस स्त्री चरित्र को जैसे देखता ही रह जाता है और फिर सोचता है–––‘आजकल भी ऐसी लड़कियां होती हैं क्या ?’ दरअसल यह वह आंख है जो यह जानती है कि हमारा असली चरित्र वही होता है जब हमें कोई नहीं देख रहा होता। कैसा होता है यह देखना ! जरा देखिए–––‘मेरी नजर उसकी पीठ पर जम गई थी, लम्बा धड़, लम्बी गरदन और कनपटी से नीचे ठोड़ी तक छोटे घुंघराले बाल–––उफ्फ ! ‘शालभंजिका !’ ‘कैसे रह जाता है किसी का कर्ज ऐसा कि हम उसे कहानी के तौर पर लौटाना चाहते हैं। कलात्मक मुक्ति का एहसास लिए यह उपन्यास अपने अद्भुत शिल्प में पात्रों के साथ–साथ पाठक को बहा ले जाता है पर यह बहाव भावुक नहीं, विचारशील है, जहां एक झटके के साथ विचार अपना प्रकाश छोड़ जाता है। जैसे–––‘कोई भी लड़की अपने सपनों को उन हाथों में नहीं सौंप सकती जो उन्हें तोड़ दें।’
कलाओं के कोलाज से सजी–धजी यह अद्भुत कृति कहीं सहमती नहीं, रचनात्मक उन्मुक्तताओं में बढ़ती जाती है सरस जीवनानुभवों के बीच रहस्यों को पार करते हुए। पात्र यहां कला में उंडेले ही नहीं जाते, अनबूझे कौतूहलों को पार करते हुए अनेक अनुत्तरित प्रश्नों के उत्तर भी देते जाते हैं।
अपने वैविध्यपूर्ण लेखन और अति समृद्ध भाषा के लिए जानी जाने वाली अपनी पीढ़ी की सर्वाधिक प्रतिष्ठित लेखिका मनीषा कुलश्रेष्ठ की यह कृति ‘शालभंजिका’ अलग तरह के शिल्प और कथ्य को वहन करती है। एक फिल्मकार नायक को लेकर लिखे गए इस उपन्यास में एक खास तरह का आस्वाद है, जिसके तर्कातीत और आवेगमय होने में ही इसकी रचनात्मक निष्पत्ति है।
Author: Manisha Kulshreshtha
Publisher: Samayik Prakashan
ISBN-13: 9789393232007
Language: Hindi
Binding: Hardback
Product Edition: 2022
No. Of Pages: 144
Country of Origin: India
International Shipping: No
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