Description
मैं अपने घर में थी जब मैंने ‘अपराध और दंड’ पढ़ी थी और घर छोड़ते ही मैंने ‘चित्रलेखा’ पढ़ना शुरू किया था। बहुत कोशिश के बाद भी मैं ‘अपराध और दंड’ को छोड़ नहीं पाई। मैंने उसे अपने बैग में रख लिया। बीच-बीच में ‘चित्रलेखा’ पढ़ते हुए मैं ‘अपराध और दंड’ के कुछ हिस्सों को टटोलने लगती। और तब कुछ अलग पढ़ने का मन करता, और लगता कि काश अगर चित्रलेखा एक ख़त रस्कोलनिकोव को लिख दे तो मैं इस वक़्त उस ख़त को पढ़ना और पढ़ें
Author: Manav Kaul
Publisher: Hind Yugm
ISBN-13: 9789392820328
Language: Hindi
Binding: Paperbacks
No. Of Pages: 240
Country of Origin: India
International Shipping: No
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