Description
पुरुष और स्त्री की बराबरी या समानता एक मूलभूत, अपरिहार्य मानवीय सिद्धान्त है। पुस्तक में जो कुछ दिखाया गया है, उससे यह स्पष्ट हो जाता है कि पुरुष और स्त्री के बीच यौन व्यवहार को हम त्याज्य या परिहार्य प्रवृत्ति मानकर नहीं चलते। काम-प्रवृत्ति की चीरफाड़ पुस्तक में की गयी है। केवल धर्मों ने, पैगम्बरों, अवतारों, मनुओं तथा मूसाओं ने ही नहीं, ऐतिहासिक समय के प्रख्यात विद्वानों ने स्त्रियों को समझने में बहुत भारी गलती की है। ऐसी गलतियाँ और अन्याय करनेवाले लोगों में अरस्तू (384-322 ई.पू.) का नाम सर्वोपरि है। वह मानते थे कि दासों का होना ज़रूरी है, दासों के कन्धों पर ही सभ्य संसार पनप सकता है। इसी विचारपद्धति को आगे बढ़ाते हुए वह कहते हैं, जैसा कि बारबरा डेकार्ड ने अपनी पुस्तक ‘दि विमेन्स मूवमेण्ट’ (नारी आन्दोलन) में दिखलाया है ‘हम इस प्रकार इस उपसंहार तक पहुँचते हैं कि यह एक साधारण प्रकृतिक नियम है कि शासक होंगे, साथ ही शासित उपादान दास पर नागरिक का शासन होगा और स्त्री पर पुरुष का। दास कतई विवेचना शक्ति से हीन होता है, स्त्री में कुछ विवेचना शक्ति होती है, पर इतनी नहीं कि वह किसी विषय पर किसी उपसंहार तक पहुँच सके।’
Author: Manmathnath Gupt
Publisher: Manmathnath Gupt
ISBN-13: 9.78935E+12
Language: Hindi
Binding: Paperbacks
Country of Origin: India
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