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Triveni (Jayasi, Surdas, Tulsidas) / त्रिवेणी (जायसी, सूरदास, तुलसीदास)...

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Description

आचार्य शुक्ल की तुलसी, सूर और जायसी की समीक्षाएँ हिन्दी-साहित्य के इतिहास में एक नये युग का आरम्भ करने वाली मानी जाती हैं। इनमें गुण-दोष-विवेचन की पारम्परिक पद्धति से आगे बढ़कर आचार्य शुक्ल ने उपर्युक्त कवियों की मूल विशेषताओं और अन्त:प्रकृतियों का गम्भीर विश£ेषण किया है। यहाँ यह स्मरणीय है कि उपर्युक्त तीनों ही कवि भक्तिकालीन हैं। तीनों ही परोक्ष-सत्ता में विश्वास करते हैं। तीनों के ही काव्य का मर्म-बिन्दु ‘प्रेमÓ है। जायसी के लिए ‘प्रेमÓ मनुष्य को वैकुण्ठी बनाने वाला है। सूर का प्रेम-वर्णन दिव्य माधुर्य की अनुभूति कराने वाला है और तुलसीदास का प्रेम कर्मक्षेत्र के श्रांत पथिक को सुख-शान्ति और शीतलता प्रदान करने वाला है। तीनों ही कवि हिन्दी-साहित्य के गौरव हैं। इन सामान्य विशेषताओं के अतिरिक्त इन तीनों महान् कवियों की कुछ ऐसी निजी विशेषताएँ हैं जिनका सम्बन्ध इनकी जीवन-दृष्टिï एवं अन्त:प्रकृति से है। इसीलिए इस पुस्तक को त्रिवेणी नाम दिया गया। विषय-सूची : भूमिका, 1. मलिक मुहम्मद जायसी, 2. महाकवि सूरदास, 3. गोस्वामी तुलसीदास, शब्दार्थ एवं टिप्पणी।



Author: Acharya Ramchandra Shukla, Dr. Ramchandra Tiwari
Publisher: Acharya Ramchandra Shukla, Dr. Ramchandra Tiwari
ISBN-13: 9.78935E+12
Language: Hindi
Binding: Paperbacks
No. Of Pages: 119
Country of Origin: India

Additional information

Weight 0.199 kg

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