Description
“आन्दोलनों के राजनीतिक स्वरूप और उसके सामाजिक प्रभावों को बारीकी से समझने के लिए एक खास नज़रिये की आवश्यकता होती है। विशेषकर जब वैश्विक स्तर पर भी कई बार आन्दोलन फ़ैशनेबल होते जा रहे हैं। देश के लब्धप्रतिष्ठित और अनुभवी पत्रकार अकु श्रीवास्तव, जिनकी पैनी नज़र और व्यापक दृष्टिकोण ने हिन्दी पत्रकारिता को नये आयाम दिये हैं, उनसे उनकी पुस्तक उत्तर-उदारीकरण के आन्दोलन के माध्यम से आन्दोलनों के ऐतिहासिक परिवेश और उनके सामाजिक प्रतिफल को समझने का मौका मिलता है। नब्बे के दशक के आर्थिक उदारीकरण ने देश की दिशा और दशा हमेशा के लिए बदल दी। इसे समझना अपने आप में एक रोचक और शोध का विषय है। लेखक इस बात की ओर इशारा करते हैं कि उदारवाद और भूमण्डलीकरण के तीस साल बाद विकास और नित नये उभरते असन्तोष की समीक्षा है ज़रूरी है। वो जिन आन्दोलनों का उल्लेख करते हैं वे वैश्विक और स्थानीय दोनों हैं, मसलन-अमेरिका का ‘ब्लैक लाइफ़ मैटर्स’ से लेकर हांगकांग में चीन के वर्चस्व के खिलाफ़ लड़ाई और भारत में शाहीन बाग़ जैसे आन्दोलन। वे इन सारे प्रकरणों में सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव और ‘नेशन वांट्स टु नो’ जैसे मनोरंजक जुमलों के साथ-साथ न्यूज़ की गम्भीरता में होने वाले ह्रास की ओर भी गम्भीरतापूर्वक ध्यान आकर्षित करते हैं। कुल मिलाकर यह पुस्तक एक सहज और रोचक लहजे में एक गम्भीर शोधनीय विषय की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करती है। प्रोफ़ेसर मिहिर भोले प्रिंसिपल फैकल्टी, इंटरडिसिप्लिनरी डिज़ाइन स्टडीज़, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ डिज़ाइन, अहमदाबाद “अकु श्रीवास्तव, पढ़ाई के दिनों से ही अख़बारी रुझान। रचनात्मक सक्रियता के चलते कुछ और सूझा ही नहीं। विश्वविद्यालय की पढ़ाई के दौरान ही अख़बार में नौकरी शुरू कर दी और फिर उसमें ऐसे रमे कि किसी और दिशा में काम करने की सोची भी नहीं।
Author: Aaku Srivastava
Publisher: Vani Prakashan
ISBN-13: 9789355182388
Language: Hindi
Binding: Paperbacks
No. Of Pages: 383
Country of Origin: India
International Shipping: No
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