Description
अनुसूचित जाति की महिलायें समाज में प्राचीन काल से ही जाति तथा लैंगिक आधार पर उपेक्षित होती रही हैं। वर्तमान में इस भेद के साथ वर्ग की अवधारणा भी जुड़ गई है। अतः वर्तमान में अनुसूचित जाति की महिलाओं के समक्ष कौन-कौन सी चुनौतियाँ हैं, व उनका समाधान क्या हो सकता है आदि कई प्रश्न हैं, जो समाज में अभी भी अनुत्तरित है। किसी भी देश में वहाँ की महिलायें उस देश की आधी आबादी का निर्माण करती हैं जो देश के विकास में अपना योगदान प्रदान कर सकती हैं, यदि उन्हे भी समान भागीदारिता का अवसर मिले?
वैश्वीकरण ने सामाजिक गतिशीलता की प्रक्रिया को तीव्र कर दिया है। जातियों के मध्य व्याप्त गैर बराबरी को कम करके उनमें बराबरी लाने में वैश्वीकरण की प्रक्रिया का बड़ा योगदान है। जाति व्यवस्था में गतिशीलता तीन स्तरों के आधार पर देखी जा सकती है जिसमें वैयक्तिक गतिशीलता, पारिवारिक गतिशीलता एवं सामूहिक गतिशीलता है। अनुसूचित जाति की महिलाओं में भी वैश्वीकरण के प्रभावों की स्पष्ट झलक देखी जा सकती है। ये महिलायें सामाजिक भेदभाव का सामना पुरुषों की अपेक्षा अधिक करती है। इस प्रकार का भेदभाव पूर्वक व्यवहार उच्च जाति की महिलाओं द्वारा अधिक किया जाता है।
प्रस्तुत पुस्तक में लेखक ने राजस्थान के जयपुर व सीकर जिले की अनुसूचित जाति की महिलाओं में सामाजिक गतिशीलता को वैश्वीकरण की प्रक्रिया ने किस प्रकार से प्रभावित किया है के संदर्भ में अध्ययन किया गया है। इस पुस्तक में अनुसूचित जाति की महिलाओं में वैश्वीकरण के परिणामस्वरूप अस्पृश्यता और गैर बराबरी के संदर्भ में वैचारिक परिवर्तन एवं समाज के अन्य वर्गों के साथ सामाजिक संबंधों व सहभागिता को समझा गया है तथा इसके साथ ही उनके शिक्षा, पारिवारिक स्थिति, व्यवसाय, प्रथाओं, रीति-रिवाजों, उच्च जाति के साथ संबंधों जीवन शैली, जीवन स्तर, राजनैतिक, आर्थिक व सामाजिक जागरूकता में आ रहे परिवर्तनों पर प्रकाश डाला गया है।
Author: Arun Kumar Tripathi
Publisher: Rawat Publications
ISBN-13: 9788131611715
Language: Hindi
Binding: Hardbound
Product Edition: 2021
No. Of Pages: 207
Country of Origin: India
International Shipping: No
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