Description
मैं रानी जिन्दाँ हूँ। खालसा की माता। यही मेरी पहचान है, यही मेरी नियति है। श्वानों के शाही प्रशिक्षक की बेटी, खूबसूरत जिन्दाँ कौर, महाराजा रणजीत सिंह की सबसे छोटी और आख़िरी रानी बनीं; वह उनकी सबसे प्रिय रानी भी थीं। छह साल की उम्र में जब उनके बेटे दलीप सिंह को अप्रत्याशित रूप से विरासत में राजगद्दी मिली तो वह उसकी संरक्षक बन गयीं। पैनी नज़र वाली, ज़िद्दी, जुनूनी और अपने बेटे की विरासत की सुरक्षा के प्रति समर्पित जिन्दाँ को अंग्रेज़ों पर भरोसा नहीं था और उन्होंने अंग्रेज़ों द्वारा पंजाब को हड़पने से बचाने के लिए पुरज़ोर लड़ाई लड़ी। परम्परा तोड़कर वह ज़नाना से बाहर निकलीं, परदे को छोड़ा और सार्वजनिक रूप से राजकाज का काम किया। खालसा सैन्यदलों को सम्बोधित करते हुए जिन्दाँ ने उन्हें फ़िरंगियों के ख़िलाफ़ दो लड़ाइयों के लिए प्रेरित किया। उनकी ताकत और उनका प्रभाव इतना अधिक था कि विद्रोह की आशंका के कारण अंग्रेज़ों ने बग़ावती रानी से उनके बेटे समेत उनका सब कुछ छीन लिया, उन्हें क़ैद कर लिया और फिर देश निकाला दे दिया। पर यह सब भी उनके अदम्य संकल्प को नहीं तोड़ पाया। यह एक राजा और एक मामूली लड़की की बेहतरीन प्रेम कहानी, निष्ठा और धोखे को लेकर सचेत करने वाली कथा और मां-बेटे के बीच के कभी न टूटने वाले रिश्ते की ज़ोरदार दास्तान है। चित्रा बैनर्जी दिवाकरुणी का यह अविस्मरणीय उपन्यास उन्नीसवीं सदी की सबसे निडर महिलाओं में से एक की कहानी को बयाँ करता है, जो आज के समय के लिए भी एक प्रेरणा है।
Author: Chitra Banerjee Divakaruni
Publisher: Manjul Publishing House
ISBN-13: 9789355431165
Language: Hindi
Binding: Paperbacks
Country of Origin: India
International Shipping: No
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