Description
पंडित नन्ददुलारे वाजपयी ने लिखा है कि हिंदी में सबसे कठिन विषय निराला का काव्य-विकास है। इसका कारण यह है कि उनकी संवेदना एक साथ अनेक स्तरों पर संचरण ही नहीं करती थी, प्रायः एक संवेदना दूसरी संवेदना से उलझी हुई भी होती थी। इसका सबसे बढ़िया उदाहरण उनका ‘अणिमा’ नमक कविता-संग्रह है। इसमें छायावादी सौंदर्य-स्वप्न को औदात्य प्रदान करनेवाला गीत ‘नुपुर के सुर मंद रहे, जब न चरण स्वच्छंद रहे’ जैसे आध्यात्मिक गीत हैं, तो ‘गहन है यह अंध करा’-जैसे राष्ट्रीय गीत भी। इसी तरह इसमें ‘स्नेह-निर्झर बह गया है’ – जैसे वस्तुपरक गीत भी। कुछ कविताओं में निराला ने छायावादी सौंदर्य-स्वप्न को एकदम मिटाकर नये कठोर यथार्थ को हमारे सामने रखा है, उदहारणार्थ ‘यह है बाज़ार’, ‘सड़क के किनारे दूकान है’, ‘चूँकि यहाँ दाना है’, आदि कविताएँ। ‘जलाशय के किनारे कुहरी थी’ प्रकृति का यथार्थ चित्रण करनेवाला एक ऐसा विलक्षण सानेट है, जो छंद नहीं; लय के सहारे चलता है।
उपर्युक्त गीतों और कविताओं से अलग ‘अणिमा’ में कई कविताएँ ऐसी हैं जो वर्णात्मक हैं, यथा ‘उद्बोधन’, ‘स्फटिक-शिला’ और ‘स्वामी प्रेमानंद जी महाराज’, ये कविताएँ वतुपरक भी हैं और आत्मपरक भी। लेकिन इनकी असली विशेषता यह है कि इनमें निराला ने मुक्त-छंद का प्रयोग किया है, जिसमें छंद और गद्द्य दोनों का आनंददायक उत्कर्ष देखने को मिलता है। आज का युग दलितोत्थान का युग है। निराला ने 1942 में ही ‘अणिमा’ के सानेट, ‘संत कवि रविदास जी के प्रति’ की अंतिम पंक्तियों में कहा था : ‘छुआ परस भी नहीं तुमने, रहे/कर्म के अभ्यास में, अविरल बहे/ज्ञान-गंगा में, समुज्ज्वल चर्मकार, चरण छूकर कर रहा मैं नमस्कार।
Author: Suryakant Tripathi 'Nirala'
Publisher: Lokbharti Prakashan
ISBN-13: 9788180319495
Language: Hindi
Binding: Hardbound
Country of Origin: India
International Shipping: No
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