Description
निर्मल वर्मा की करुणा आत्मदया नहीं है, यह एक समझदार और वयस्क करुणा है। यह करुणा जीवन में विसंगतियों को देखती है और उन्हें समझती है, गोकि कुछ करती नहीं। निर्मल वर्मा की कहानियों के पात्र एक-दूसरे को भीतर से समझते हैं, इसलिए उनमें आपस में कोई विरोध या संघर्ष नहीं है, वे एक-दूसरे को काटते नहीं, एक-दूसरे के अस्तित्व की प्रतिज्ञाओं को तोड़ते नहीं। एक अर्थ में वे यथास्थितिवादी हैं। वे अपने केन्द्र पर अपनी अनुभूति की पूरी सजीवता से डोलते हुए सिर्फ स्थिर रहना चाहते हैं, न अपने आपको, न अपने परिवेश को और न इन दोनों के सम्बन्ध को ही बदलना चाहते हैं। -मलयज बीच बहस में एक मौत हुई थी। लगा था कि दिवंगत के साथ ही उसके साथ होने वाली बहस भी समाप्त हो गयी। पर बहस समाप्त हुई नहीं। हो भी कैसे? बहस केवल उससे तो थी नहीं, जो चला गया। वह तो अपने आप से है, उनसे है जो बच रहे हैं। और जो मौत भी हुई है, वह कोई टोटल, सम्पूर्ण मौत तो है नहीं। क्यों कोई मौत टोटल होती है? -सुधीर चंद्र
Author: Nirmal Verma
Publisher: Vani Prakashan
ISBN-13: 9789387155671
Language: Hindi
Binding: Paperbacks
No. Of Pages: 128
Country of Origin: India
International Shipping: No
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