Description
राही लगभग पच्चीस साल फिल्म जगत से जुड़े रहे। उन्होंने तीन सौ से अधिक फिल्मों की पटकथा और संवाद लिखे। उन्होंने अच्छी-बुरी सभी तरह की फिल्में लिखीं। वे बहुत यथार्थवादी थे और सफाई से कहते थे कि फिल्म में लेखक की कोई अहम भूमिका नहीं होती फिर भी मैं अपनी बात कहने के लिए फिल्म का कुछ हिस्सा हथिया लेता हूँ। उनकी कुछ सफल और महत्त्वपूर्ण फिल्में हैं – ‘वैराग’, ‘फाँसी’, ‘हत्यारा’, ‘प्रेम कहानी’, ‘दो प्रेमी’, ‘परछाइयाँ’, ‘जुदाई’, ‘सगीना’, ‘मैं तुलसी तेरे आँगन की’, ‘अन्धा कानून’, ‘रास्ते का पत्थर’, ‘सरगम’, ‘जूली’। उन्हें संवाद और पटकथा के लिए तीन बार फिल्म फेयर पुरस्कार मिला। परन्त राही की पहचान दूरदर्शन के छोटे पर्दे पर ही एक लेखक के रूप में बनी। उन्होंने अनेक सफल धारावाहिक लिखे। लेकिन महाभारत के संवादों और पटकथा ने तो उन्हें अमर बना दिया।
इस पुस्तक में राही सिनेमा का सम्बन्ध साहित्य के साथ समाज से भी जोड़ते हैं। वे व्यक्ति की अस्मिता का प्रश्न भी उठाते हैं। बुद्धिजीवियों पर कटाक्ष करते हैं कि वे देश और जनता की समस्याओं पर चुप्पी साधकर भ्रष्ट और बेईमान राजनीतिज्ञों को लाभ पहुंचा रहे हैं। उन्हें बार-बार अलीगढ़ भी याद आता है और गम्भीर बात करते-करते अलीगढ़ की। गलियों और सड़कों में खो जाते हैं। धर्म, संस्कृति, राष्ट्रीयता के सवालों पर खुलकर बहस करने की बात करते हैं।
Author: Rahi Masoom Raza
Publisher: Vani Prakashan
ISBN-13: 9788170557739
Language: Hindi
Binding: Hardbound
Country of Origin: India
International Shipping: No
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