Description
दत्ता कोल्हारे यह जानते और मानते हैं कि आज का संवेदनशील रचनाकार पर्यावरण की हो रही हानि तथा परिवर्तनों को देखकर आंखें मूंदे नहीं सकता । वह पर्यावरण संरक्षण के प्रति सचेत करते हुए पर्यावरण चिन्ता के प्रति पाठकों को सन्देश देना आवश्यक समझता है । इस पुस्तक में दत्ता कोल्हारे अपने जैसे छब्बीस आलोचकों की एक टीम के साथ इस चिन्ता को विस्तृत रूप देते हुए एक महत्त्वपूर्ण काम करते हैं । हिन्दी कविता व काव्य साहित्य में पर्यावरण बोध के साथ ही उनके साथ के आलोचक समकालीन हिन्दी नवगीत में पर्यावरण चिन्तन पर भी विचार करते दिखाई देते हैं । मानवी इच्छाओं की प्रयोगशाला से बढ़ते संकट के साथ ही उनकी दृष्टि जल की व्यथा–कथा ‘कुइयाँजान’, ‘हरा आकाश’, ‘दावानल’, ‘चलती चाकी’, ‘अपना मन उपवन’ पर बन रही है । यह पुस्तक इक्कीसवीं सदी की कहानियों में पर्यावरण चिन्तन के साथ ही अधुनातन नाट्यसाहित्य में पर्यावरण समस्या व शिक्षा में पर्यावरण पर भी गम्भीर विमर्श करती है । इस दृष्टि से यह पुस्तक ‘हिन्दी साहित्य में पर्यावरणीय संवेदना’ हिन्दी आलोचना का एक नया स्वरूप सामने रखती है।
Author: DATTA KOLHARE
Publisher: DATTA KOLHARE
ISBN-13: 9.78819E+12
Language: HINDI
Binding: Hardbound
No. Of Pages: 208
Country of Origin: India
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