Description
मेवात भगवानदास मोरवाल के लेखकीय और नागरिक सरोकारों का केन्द्र रहा है। अपनी मिट्टी की संस्कृति, उसके इतिहास और सामाजिक-आर्थिक पक्षों पर उन्होंने बार-बार निगाह डाली है। काला पहाड़ के बाद ख़ानज़ादा उपन्यास इसकी अगली कड़ी है। इस उपन्यास का महत्त्व इस बात से भी है कि यह उन अदृश्य तथ्यों की निर्ममता से पड़ताल करता है जो हमारी आज की राष्ट्रीय चिन्ताओं से सीधे जुड़े हुए हैं। तुग़लक़, सादात, लोदी और मुग़ल राजवंशों द्वारा चौदहवीं सदी के मध्य से देहली के निकट मेवात में मची तबाही की दस्तावेज़ी प्रस्तुति करते हुए यह उपन्यास मेवातियों की उन शौर्य-गाथाओं को भी सामने लाता है जिनका इतिहास में बहुत उल्लेख नहीं हुआ है।
प्रसंगवश इसमें हमें कुछ ऐसे उद्घाटनकारी सूत्र भी मिलते हैं जो इतिहास की तोड़-मरोड़ से त्रस्त हमारे वर्तमान को भी कुछ राहत दे सकते हैं; मसलन—बाबर और उसका भारत आना। हिन्दू अस्मिता का उस वक़्त के मुस्लिम आक्रान्ताओं से क्या रिश्ता बनता था, धर्म-परिवर्तन की प्रकृति और उद्देश्य क्या थे और इस प्रक्रिया से वह भारत कैसे बना जिसे गंगा-जमुनी तहज़ीब कहा गया, इसके भी कुछ संकेत इस उपन्यास में मिलते हैं। यह श्रमसाध्य शोध से बुना गया एक अविस्मरणीय आख्यान है।
Author: Bhagwandas Morwal
Publisher: Rajkamal Prakashan Pvt. Ltd.
ISBN-13: 9788119835324
Language: Hindi
Binding: Hardbound
No. Of Pages: 491
Country of Origin: India
International Shipping: No
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