Description
प्रारब्ध – पुरुष की बड़ी से बड़ी कमज़ोरी समाज पचा लता है लेकिन नारी को उसकी थोड़ी सी चूक के लिए भी पुरुष समाज उसे कठोर दण्ड देता है जबकि इसमें उसकी लिप्सा का अंश कहीं अधिक होता है। वास्तव में नारी अपने मूल अधिकारों से तो वंचित है, लेकिन सारे कर्तव्य और उसके हिस्से मढ़ दिये गये हैं। आशापूर्णा का मानना है कि नारी का जीवन अवरोधों और वंचना में ही कट जाता है, जिसे उसकी तपस्या कहकर हमारा समाज गौरवान्वित होता है। इस विडम्बना और नारी जाति की असहायता की ही वाणी मिली है यशस्वी बांग्ला कथाकार के इस अनुपम उपन्यास में।
Author: Ashapurna Devi
Publisher: Vani Prakashan
ISBN-13: 9789355189448
Language: Hindi
Binding: Hardbound
Product Edition: 2023
No. Of Pages: 353
Country of Origin: India
International Shipping: No
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