Description
अर्थशास्त्र जानने वाले कहते हैं कि गाँव की तरक्की हो गयी है। समाजशास्त्र के विद्वान कहते हैं कि रिश्तों में दरार आ गयी है। गाँव के लोग कहते हैं कि अब वह बात नहीं रहीं। बहुत उदास-उदास लगता है। यहाँ रहने का मन नहीं होता। लब्बो-लुबाब यह कि इतनी उदास, मनहूस और कर्ज में डूबी तरक्की। बैंकों की मदद से हमारे गाँव में तीन लोगों ने ट्रैक्टर खरीदे और तीनों के आधे खेत बिक गये। ट्रैक्टर औने-पौने दाम में बेचने पड़े। पता नहीं कर्ज चुकता हुआ कि नहीं? पंचायती राज में लोकतंत्र को गाँवों तक ले जाने का कार्यक्रम बना। फिर तो, अपहरण, हत्याएँ और मुकदमेबाजी। सारे के सारे गाँव थानों और कचहरियों में जाकर कानून की धाराएँ रटने लगे।… ‘अस्सी की एक शाम’ से.
Author: Devendra
Publisher: Devendra
ISBN-13: 9.78819E+12
Language: Hindi
Binding: Hardbound
No. Of Pages: 167
Country of Origin: India
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