Description
आदिवासी समाज में इतिहास और संस्कृति का विकास साहित्य व अन्य कला-माध्यमों के समान दूसरी मुख्य धाराओं से पहले हो चुका था परन्तु इनके साहित्य सृजन की परम्परा मूल रूप से मौखिक रही है। ठेठ जनभाषा में होने और सत्ता प्रतिष्ठानों से इनकी दूरी की वजह से यह इतिहास और साहित्य अपने समाज की तरह ही उपेक्षा का शिकार रहा है। आज भी सैकड़ों देशज जनभाषाओं में आदिवासी इतिहास रचा जा रहा है, जिसमें से अधिकांश से हमारा व हमारे इतिहास-लेखन का संवाद शेष है। वर्तमान समय में इतिहास-लेखन की अधुनातन परम्पराओं में आदिवासी इतिहास-लेखन समय व काल के सन्दर्भों में सर्वाधिक प्रासंगिक व महत्त्वपूर्ण लेखकीय आयाम है। वस्तुगत रूप से आदिवासी इतिहास-लेखन अब तक के सरकारी-सर्वेक्षणों, घटना-वृत्तों, व्यक्तिगत-विवरणों के आस-पास टिका रहा है। आज जब हम सभी इतिहास-लेखन के नये आयामों को तलाश कर रहे हैं और मौखिक स्रोतों को इतिहास-लेखन का महत्त्वपूर्ण साध्य मान रहे हैं तब ऐसे समय में यह आवश्यक है कि आदिवासी इतिहास और संस्कृति को ध्यान में रख कर लेखकों का लेखन कार्य हो। आदिवासी इतिहास-लेखन का रचना-सन्दर्भ भी आदिवासी संस्कृति के सरोकारों के आस-पास केन्द्रित हो। इससे हम आदिवासी इतिहास-लेखन के लिए एक आवश्यक और तय अनुशासन-प्रविधि का निर्माण कर सकेंगे। अनुराधा सिंह जन्म : 16 जून, 1976, वाराणसी (उ.प्र.)। शिक्षा : एम.ए., पीएच.डी. काशी हिन्दू विश्वविद्यालय व महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ। शोध-गतिविधियाँ : आदिवासी इतिहास-लेखन व क्षेत्रीय इतिहास-लेखन में संलग्न। सम्प्रति : काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग में एसोसिएट प्रोफ़ेसर के पद पर कार्यरत।
Author: Anuradha Singh
Publisher: Vani Prakashan
ISBN-13: 9789355180049
Language: Hindi
Binding: Hardbound
Product Edition: 2023
No. Of Pages: 255
Country of Origin: India
International Shipping: No
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